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________________ रखकर उसमें लीन हो गई। क्षणभर में वैसे ही रह कर एकान्त में जाकर उस सखी को कि जो उसके गुप्त अभिप्राय रूप सर्वस्व को रखने की निधान भूमि जैसे थी, उसे कहा कि, “सखी! जिसका यह सुंदर चित्र है, उसे मैं पति रूप में वरण करना चाहती हूँ। (गा. 230 से 238) उसके साथ जोड़ देने में मेरा विधि (विधाता) कौन होगा? यदि यह मनोहर युवा मेरा पति न हो तो मेरा हृदय पक्क चिभड़े की तरह द्विधा हो जाय, इसमें जरा भी संशय नहीं। इसलिए हे भद्रे! यहाँ क्या उपाय करना? वह कह। मुझे तो उपाय एक नजर आता है कि उनके रूप को पूजने वाले वणिक का शरण लेना। वही उपयुक्त लगता है। इसलिए हे यशस्विनी! हे मेरे कार्य धुरा को वहन करने वाली! तू शीघ्र ही जाकर उस वणिक को प्रसन्न कर और लौटकर शीघ्र आकर उसका संदेशा मुझे कह। तेरा कल्याण हो।" __ (गा. 239 से 242) दासी ने दुकान पर आकर वणिक् रूप अभयकुमार को प्रर्थाना की। अभयकुमार ने कहा कि “मैं अल्प समय में ही तुम्हारी सखी का मनोरथ पूर्ण कर दूंगा। मैं एक सुरंग खुदवा कर उससे राजा श्रेणिक को यहाँ ले आऊंगा। उस समय जो रथ आवे, उसमें तुम्हारी सखी को शीघ्र ही उसमें बैठ जाने का। तुम्हारी स्वामिनी श्रेणिक को यहाँ आया देखकर इस चित्र में आलेखित रूप के साथ उसे पाकर हर्ष प्राप्त करेगी।" इस प्रकार कहने के बाद 'अमुक स्थान पर, अमुक दिन, एवं अमुक समय श्रेणिक राजा सुरंग द्वारा आयेंगे।' ऐसा निश्चित कर उसने मुख से संकेत किया। दासी उसी प्रकार सुज्येष्ठा को कह कर लौट कर आकर अभयकुमार को बोली किआप के वचन प्रमाण है।' तब वह अंतःपुर में पुनः चली गई। अभयकुमार ने दुकान समेटी और राजगृह नगर में जाकर पिता को उस संकेत की बात कह सुनाई और सुरंग बनवाने में तत्पर हो गया। (गा. 243 से 248) इधर सुज्येष्ठा ने जब से श्रेणिक राजा का चित्र देखा, तब से ही श्रेणिक राजा का ही स्मरण करती हुई काम के वशीभूत हो अरति प्राप्त करने लगी। ऐसे करते करते संकेत का निर्णय किया हुआ दिन आ गया, तब श्रेणिक राजा 140 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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