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________________ तापसी को विदा करके और मानो पंख प्राप्त करके वैशाली नगर में जाना चाहता हो वैसे उसका स्मरण करता हुआ रहने लगा। (गा. 214 से 222) दूसरे ही दिन राजगृहपति श्रेणिक ने सुज्येष्ठा की प्रार्थना करने के लिए एक दूत को शिक्षा देकर चेटक राजा के पास भेजा। संदेश देने में चतुर ऐसा वह दूत सद्य ही विशाला में आकर चेटक राजा को नमन करके बोला कि-'हे राजन्! मेरे स्वामी मगधपति श्रेणिक आपकी कन्या सुज्येष्ठा की मांग कर रहे हैं। महान् पुरुषों को कन्या की मांग करना लज्जास्पद नहीं है।'' चेटक राजा बोले कि- “अरे दूत! तेरे स्वामी स्वयं से ही अनजान लगता है कि जो वाही कुल में उत्पन्न होकर भी हैहयवँश की कन्या की इच्छा कर रहा है। समान कुल के वरकन्या का विवाह होना योग्य है। अन्य का नहीं। इसलिए मैं श्रेणिक को कन्या नहीं दूंगा। तू चला जा।' दूत ने आकर यह सर्व वृतांत श्रेणिक राजा को कहा। इससे शत्रुओं से पराभव हुआ हो वैसे वह बहुत खेद को प्राप्त हुआ। उस समय अभयकुमार पिता के चरणकमल में भ्रमर रूप होकर खड़ा था, वह बोला कि, 'पिताजी! शोक मत करो, मैं आपकी इच्छा पूर्ण करूंगा।' (गा. 223 से 229) तब कलाकलाप के सागर अभयकुमार ने घर जाकर एक पट्टिका पर मगधपति श्रेणिक का चित्र आलेखित किया और गुटिका से वर्ण तथा स्वर बदल कर वणिक का वेश बनाकर वैशाली नगरी में गया। वहाँ चेटक राजा के अंतःपुर के पास एक दुकान किराये से ली और अंतःपुर की दासियों को जो वस्तु लेने आती वह किफायत से देने लगा। साथ ही वे दासियाँ देख सके वैसे पट पर आलेखित श्रेणिक राजा की नित्य ही पूजा करने लगा। यह देख दासियों ने पूछा-'कि यह किसका चित्र है ? तब उसने कहा कि, 'यह रूप श्रेणिक राजा कि जो मेरे देव तुल्य हैं, उनका है। श्रेणिक का दिव्य रूप दासियों को देखने में आया वैसा उन्होंने वर्णन करके सुज्येष्ठा को कहा। सुज्येष्ठा ने अपनी सखी जैसी जो सर्व से ज्येष्ट दासी थी, उसे आज्ञा दी कि 'उन श्रेणिक का चित्र मुझे शीघ्र ही लाकर दिखा, उसे देखने का मेरे मन में कौतुक है।' उस दासी ने अभयकुमार की दुकान पर आकर अत्याग्रह से उस चित्र को ले जाकर सुजेष्ठा को दिखाया। अत्यन्त सुन्दर चित्र को देखकर सुज्येष्ठा योगिनी की तरह नेत्रकमल को स्थिर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 139
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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