SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहकर क्रोधित हुए इंद्र ने वज्र द्वारा पर्वत के जैसे उस अधम देव को बांये पैर से प्रहार किया। तब विविध आयुधों को धारण किये हुए इंद्र के सुभट ने उसे धक्का मार कर बाहर निकालने लगे। देवताओं की स्त्रियाँ हाथ के कड़ाके मोडकर उस पर आक्रोश करने लगी। इसी प्रकार सामानिक देवता भी उसका हास्य करने लगे। इस प्रकार तिरस्कृत वह अधम देव यानक नामक विमान में बैठकर शेष रहा हुआ एक सागरोपम का आयुष्य भोगने के लिए मेरुगिरि की चूलिका पर चला गया। तब उस संगमक की स्त्रियों ने आकर इंद्र को विज्ञप्ति की कि 'हे स्वामी! यदि आपकी आज्ञा हो तो हम हमारे पति के पीछे जावे? दीनवदन वाली उन स्त्रियों को संगमक के पीछे जाने की इंद्र ने आज्ञा दे दी और अन्य सर्व परिवार को पीछे जाने से रोक लिया। (गा. 284 से 318) इधर वीर भगवंत दूसरे दिन पारणे के लिए गोकुल गांव में गोचरी के लिए निकले। वहाँ एक वृद्ध वत्सपालिका नामक गोपी ने भक्तिपूर्वक प्रभु को कल्पित परम अन्न से प्रतिलाभित किया। चिरकाल से प्रभु का पारणा होने पर हर्षित हुए समीपस्थ देवताओं ने वहाँ पंच दिव्य प्रगट किये। वहाँ से विहार करके प्रभु आलंभिका नामक नगरी में पधारे। वहाँ प्रतिमा धारण करके चित्ररथ की भांति स्थिर हुए। वहाँ हरि नामक विद्युत कुमार के इन्द्र प्रभु के समीप आकर प्रदक्षिणा देकर नमन करके इस प्रकार बोले कि-'हे नाथ! आपने जो उपसर्ग सहन करे, वह श्रवण करके से भी हमारा हृदय विदीर्ण हो जाता है,। प्रभु आप तो वज्र से भी अधिक दृढ़ हो। हे प्रभु! अब तो मात्र थोड़े ही उपसर्ग सहन करके आप चार घाति कर्मों का क्षय करेंगे।" इस प्रकार कथन करके भगवंत को भक्ति से नमस्कार करके वह विद्युत्कमार निकाय का इंद्र अपने स्थान पर चला गया। वहाँ से विहार करके प्रभु श्वेतांबी नगरी में पधारे। वहाँ हरि नाम के विद्युत्कुमार इंद्र ने आकर वंदना की। वह भी हरिचंद्र की तरह अपने स्थान पर चले गया। (गा. 319 से 327) प्रभु वहाँ से विहार करके श्रावस्ती नगरी में आकर प्रतिमा धारण करके रहे। उस दिन सम्पूर्ण नगरी में लोगों ने कार्तिक स्वामी की रथयात्रा का उत्सव बड़े आडम्बर से किया था। इससे प्रतिमाधारी प्रभु को छोड़कर नगरजन पूजा 92 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy