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________________ कलाओं से पल्लवित, लज्जादि गुणों से पुष्पित और पति की भक्ति द्वारा फलित ऐसी वह रानी जंगल बेली की जैसी शोभती थी। अनेक समय के पश्चात उस लक्ष्मीवती ने एक पुत्री को जन्म दिया। जो अपनी कांति से सूतिका गृह की मांगल्यदीपिका जैसी दृष्टिगत होने लगी। सर्वलक्षण संपन्न उस बाला के जन्म से ही मानो लक्ष्मी आई हो, इस प्रकार उसके माता पिता हर्षित हुए। धनपति कुबेर उसके पूर्वजन्म का पति था। इससे पूर्व स्नेह से मोहित होकर उसके जन्म समय आकर उसके यहाँ कनकवृष्टि कर दी। इस कनक की वृष्टि से हर्षान्वित होकर उस राजा हरिचंद्र ने उस पुत्री का नाम कनकवती रखा। स्तनपान करती हुई यह बाला धात्री माताओं के उत्संग में संचरती अनुक्रम से हंसी की तरह पैरों से चलने में समर्थ हुई। जब यह बाला पैरों से चलती तब उसकी धात्री करतालिका बजाकर नये नये उल्लापन से गाती थी। जब वह धीरे-2 मंदमंद वाणी से बोलने लगी तब वे धात्रियाँ मैंना की तरह उससे कौतुक से बारंबार आलाप करती थी। केश को गुंथाती कुंडल को हिलाती, और नुपूर को बजाती यह बाला मानो दूसरी मूर्तिधारी रमा हो, वैसे रत्नजडित कंदुक से क्रीडा करती थी और हमेशा खिलौनों के साथ खेलती हुई वह राजकुमारी प्रफुल्लित नेत्रवाली उसकी माता को अत्यंत हर्ष प्रदान करती थी। (गा. 13 से 23) अनुक्रम से मुग्धता से मधुर ऐसी बाल्यवय का त्याग कर वह कनकवती कला कौशल ग्रहण करने के योग्य हुई। अतः राजा हरिश्चंद्र ने उसे कला ग्रहण कराने के लिए शुभ दिन में किसी योग्य कलाचार्य को सौंपा अल्प समय में मानो लिपि का सृजन करने वाली हो, वैसे उसने अठारह प्रकार की लिपियों का ज्ञान प्राप्त कर लिया। शब्द शास्त्र अपने नाम की भांति कंठस्थ कर लिया। तर्कशास्त्र के अभ्यास से गुरू को भी पत्रदान विजय पत्र लाने में समर्थ हुई। छंद और अलंकार शास्त्र रूप समुद्र में पारंगत हुई। छः प्रकार की भाषा को अनुसरती, वाणी बोलने में इसी प्रकार काव्य में कुशल हुई। वह चित्रकर्म से सबको आश्चर्य कराने लगी। और पुस्तक कर्म (मृतिका पिष्टादिक के पुतले आदि बनाने ) में कुशल बनी। गुप्त क्रिया पद और धारक वाले वाक्यों की ज्ञाता हुई, प्रहेलिका समस्या में वाद करने लगी। सर्व प्रकार की चूत क्रीड़ाओं में दक्ष हुई। (गा. 24 से 28) 78 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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