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________________ इस प्रकार की हकीकत को जानकर वसुदेव भयभीत हो गए। इससे राजकुमार प्रियंगुसुंदरी के न जाकर रात को बंधुमती के साथ ही सो गए। उस रात्रि में निद्रा भंग होने पर एक देवी उनको देखने आई । तब यह कौन होगी ? ऐसा वे सोचने लगे। इतने में अरे! वत्स! क्या सोचते हो ? ऐसा बोलती हुई वह देवी उनका हाथ पकड़ कर उनको अशोक वन में ले गई। वहाँ जाकर कहा कि सुनो! इस भरतक्षेत्र में श्री चंदन नामक नगर में अमोघरेता नाम के राजा थे। उनके चारूमति नाम की प्रिया थी । उसके चारूचंद्र नाम का एक पुत्र हुआ । उस नगर में अनंतसेना नाम की एक वेश्या थी। उसके कामपताका जैसी सुलोचना पुत्री थी । एक समय राजा ने एक यज्ञ किया, उसमें बहुत से तापस आये। उनमें कौशिक और तृणबिंदु दो उपाध्याय थे । उन दोनों ने आकर राजा को अनेक फल अर्पण किये। राजा ने पूछा- ऐसे फल कहाँ से लाए ? तब उन्होंने हरिवंश की उत्पत्ति के समय आए हुए कल्पवृक्ष की सब कथा प्रारम्भ से कह सुनाई । उस समय राज्य सभा में कामपताका वेश्या नृत्य कर रही थी । (गा. 520 से 529) उसने कुमार चारूचंद्र और कौशिक मुनि का मन हर लिया। यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात कुमार ने कामपताका को अपने अधीन कर लिया । पश्चात् कौशिक तापस ने राजा के पास आकर उस वेश्या की मांग की। तब राजा ने कहा कि, उस वेश्या को कुमार ने ग्रहण कर लिया है और वह श्राविका है । एक पति को स्वीकार करने के पश्चात अन्य की इच्छा नहीं करती। इस प्रकार राजा ने उसका निषेध किया। इससे कौशिक तापस ने क्रोध में उसे श्राप दिया कि कुमार जब उसके साथ क्रीड़ा करेगा तो अवश्य ही उसकी मृत्यु हो जाएगी । महामति राजा अमोघरेता ने इस प्रकार से वैराग्य वासित होकर अपने पुत्र चारूचंद्र को राज्य देकर स्वंय वापस वन में निवास करने लगे। उस समय अज्ञातगर्भा रानी थी उनके साथ वन में आई। समय पर गर्भ प्रकट हुआ। तब रानी ने पहले से ही पति की शंका के निवारण हेतु बात स्पष्ट कह दी थी । पश्चात उसने ऋषिदत्ता कन्या को जन्म दिया। वह कन्या अनुक्रम से किसी चारणमुनि के समीप श्राविका बनी । वह युवती हुई कि उस माता और धायमाता की मृत्यु हो गई । एक बार शिलायुध राजा मृगया हेतु वहाँ आया । ऋषिदत्ता के देखते ही वह कामवश हो गया । उसका आतिथ्य स्वीकार करके राजा वहीं पर रहा और उस बाला को एकांत में ले जाकर विविध प्रकार से उसके साथ संभोग क्रीड़ा की । उस वक्त ऋषिदत्ता ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) 72
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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