SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूर्व में अश्वग्रीव नामक एक अर्ध चकवर्ती हुए थे। उनके हरिश्मश्रु नाम का एक मंत्री था। वह कौल नास्तिक था। इससे वह धर्म की निंदा करता था और राजा आस्तिक होने से सदा धर्म का प्रतिपादन करता था। ऐसा होने से उस राजा और मंत्री के बीच दिन प्रतिदिन विरोध बढने लगा। उन दोनों को त्रिपृष्ट और अचल ने मारा। जिससे मरकर सातवें नरक में गये। नरक में से निकलकर बहुत से भव में उन्होंने भ्रमण किया। . (गा. 508 से 510) उनमें से अश्वग्रीव वह मैं, तुम्हारा पुत्र हुआ और हरिश्मश्रु मंत्री वह पाडा हुआ। पूर्व के वैर से मैंने उनका पैर काट डाला। वह पाड़ा मरकर लोहिताक्ष नामक असुरों का अग्रणी हुआ है। वह देखो, यह यहाँ मुझे वंदन करने आया है। इस संसार का नाटक ऐसा विचित्र है। तब लोहिताक्ष में मुनि को नमस्कार करके उन मृगध्वज मुनि की, कामदेव सेठ की और तीन पैर वाले महिष की रत्नमयी प्रतिमा बनवा कर यहाँ स्थापना की है। उस कामदेव श्रेष्ठी के वंश में अभी कामदत्त नाम के सेठ हैं। उनके बंधुमती नाम की पुत्री है। उस पुत्री के वर के लिए किसी ज्ञानी ने पूछा था, तब ज्ञानी ने कहा था कि जो इस देवालय के मुख्य द्वार को खोल देगा, वही तुम्हारी पुत्री का वर होगा। (गा. 511 से 516) इस प्रकार सर्व वृत्तांत जानकर वसुदेव ने वह द्वार खोला, यह बात जानकर तत्काल कामदत्त सेठ ने वहाँ आकर वसुदेव को अपनी पुत्री दी। उनको देखने के लिए राजा की पुत्री प्रियंगुसुंदरी राजा के साथ वहाँ आई। वह वसुदेव को देखते ही तत्क्षण काम पीडित हो गई। तब द्वारपाल ने आकर प्रियंगुसुंदरी की दशा और एणीपुत्र राजा का चरित्र अंजलि जोडकर वसुदेव को बताया एवं कहा कि कल प्रातः आप प्रियंगुसुंदरी के घर अवश्य पधारना। ऐसा कह द्वारपाल चला गया। (गा. 517 से 519) उस दिन वसुदेव ने एक नाटक देखा। उसमें ऐसी हकीकत आई कि नमि का पुत्र वासव खेचर हुआ। व उसके वंश में दूसरे अनेक वासव हुए। उनका पुत्र पुरोहित हुआ। एक बार वह हाथी पर बैठकर घूमने गया था। वहाँ उसने गौतम की स्त्री अहिल्या को देखा। तब उसने आश्रम में जाकर उसके साथ क्रीड़ा की। उस समय गौतम ने ऐसी विद्यारहित हुए पुरोहित के लिंग का छेदन कर दिया। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 71
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy