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________________ वृक्ष के फल को मुख में लेकर स्वंयमेव खाते हुए ऐसे एक बालक को गोद में ले लिया। उसकी इस पीपल के फल को खाने की चेष्टा से उनको पिपलाद ऐसा यथार्थ नाम रखा। उसे यत्न से बडा किया। और वेदविद्या का अभ्यास कराया। विपुल बुद्धिवाला वह अति विद्वान और वादी के गर्व को तोडने वाला हुआ। उसकी ख्याति सुनकर सुलसा और याज्ञवल्क्य उसके साथ वाद करने आए। उसने दोनों को वाद में जीत लिया। बाद में जब उसे विदित हुआ कि ये दोनों मेरे माता पिता हैं और उन्होंने जन्म से ही मेरा त्याग कर दिया था इससे उसके बहुत क्रोध आया। उसने मातृमेघ और पितृमेघ यज्ञ में उसके पिता माता को मार डाला। बाद में मैं टंकण देश में मेंढा हुआ, जहाँ रूद्रदत ने मुझे मार डाला। उस समय चारूदत ने मुझे धर्म सुनाया जिसके फलस्वरूप मैं सौधर्म देवलोक में देवता हुआ। इसलिए यह कृपानिधि चारूदत मेरे धर्माचार्य हैं। इस कारण प्रथम मैंने उनको प्रथम नमस्कार करके किसी भी क्रम का उल्लंघन नहीं किया। (गा. 275 से 289) देव के इस प्रकार कहने पर दोनों खेचर भी बोले कि हमारे पिता को जीवन देने से यह तुम्हारी तरह हमारे भी उपकारी हैं। उस देव ने मुझे कहा कि हे निर्दोष चारूदत्त! कहो, मैं तुम्हारा इहलौकिक में क्या प्रत्युपकार करूँ? मैंने उसे कहा कि तुम योग्य समय पर आना। तब वह देव अंतर्ध्यान हो गया। वे दोनों खेचर मुझे शिवमंदिर नगर में ले गए। उन्होंने और उनकी माता ने जिनका गौरव शाली हुआ है, वे और उनके बंधुओं से अधिकाधिक सेवा लेता हुआ मैं बहुत काल पर्यंत वहाँ ही रहा। एक बार उनकी बहन गंधर्वसेना को मुझे बताकर कहा कि दीक्षा लेते समय हमारे पिता ने हमको कहा कि किसी ज्ञानी ने मुझे कहा है कि कलाओं से जीतकर इस गंधर्वसेना का वसुदेव कुमार के साथ विवाह होगा अतः मेरे भूचरबंधु चारूदत को तुम इस तुम्हारी बहन को दे देना ताकि भूचर वसुदेव कुमार सुखपूर्वक उससे विवाह कर सके। अतः इस पुत्री को तुम्हारी ही पुत्री मानकर तुम इसे ले जाओ। इस प्रकार उनके वचनों को अंगीकार करके मैं गंधर्व सेना को लेकर मेरे स्थानक पर जाने को तैयार हुआ, इतने में वहाँ वह देव आ पहुंचा। पश्चात वह देव वे दोनों खेचर और उनके पक्ष के दूसरे खेचर शीघ्रता से कुशलक्षेम लीलापूर्वक मुझे आकाशमार्ग से यहाँ ले आये। और वह देव तथा विद्याधर मुझे कोटि-कोटि सुवर्ण माणक और मोती देकर अपने अपने स्थान पर गये। (गा. 290 से 299) 56 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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