SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करूंगा तो तुम वह सुनकर शीघ्र ही वहाँ आना।' इस प्रकार कहकर बलराम नगर में गये। उस समय नगरजन उनको देखकर यह देवाकृति पुरुष कौन है? ऐसे आश्चर्यचकित होकर निरखने लगे। विचार करते-करते उनको ख्याल आया कि 'द्वारका अग्नि से जलकर भस्म हो गई है, वहाँ से निकलकर ये बलभद्र यहाँ आए लगते हैं।' बलभद्र ने किसी दुकान पर जाकर अंगुली से मुद्रिका देकर विधि प्रकार का भोजन लिया और कलाल की दुकान से कड़ा देकर मदिरा ली। वह लेकर बलदेव जैसे ही नगरी के द्वार की ओर चले, वैसे ही राजा का चौकीदारों ने उनको देखकर विस्मित होकर यह बात राजा को ज्ञात कराने के लिए राजा के पास गये। उस नगर में घृतराष्ट्र का पुत्र अच्छदंत राज्य करता था। पूर्व में जब पांडवों ने कृष्ण का आश्रय लेकर सब कौरवों का विनाश किया, तब उसे ही अवशेष रखा था। रक्षकों ने आकर उस राजा से कहा कि 'कोई बलदेव के जैसा पुरुष चोर की भांति महामूल्वान कड़ा और मुद्रिका देकर उसके बदले में अपने नगर में से मद्य और भोजन लेकर नगर के बाहर जा रहा है। अब वे बलभद्र हो या कोई चोर हो, हमने आपको जानकारी दे दी है। इस बाबत हमारा कोई अपराध नहीं है।' ऐसे समाचार सुनकर अच्छदंत सैन्य बल लेकर बलदेव को मारने के लिए उसके पास आया और नगर के दरवाजे बंद करवा दिये। शीघ्र ही बलदेव उस भोजन एवम् पान को एक ओर रखकर हाथी का आलानस्तंभ उखाड़ कर सिंहनाद करके शत्रु के सैन्य पर टूट पड़े। सिंहनाद सुकर कृष्ण भी वहाँ आने के लिए दौड़े। दरवाजे बंद देखकर पैरों के प्रहार से पैरों से कवाड़ों को तोड़कर समुद्र में जैसे वडवानल घुसता है वैसे उस नगर में घुसे। कृष्ण ने उस दरवाजे की अर्गला से ही शत्रु के तमाम सैनिकों को मार डाला। तब वशीभूत हुए राजा अच्छदंत को उन्होंने कहा कि 'अरे मूर्ख! हमारी भुजा का बल अभी कहीं नहीं गया, यह जानते हुए भी तुमने यह क्या किया? अब जा, निश्चल होकर तेरे राज्य को भोग। तेरे अपराध करने पर भी हम तुझे छोड़ देते हैं। ऐसा कहकर नगर से बाहर आकर उन्होंने उद्यान में बैठकर भोजन किया। फिर वहाँ से दक्षिण दिशा की ओर चलकर कौशांबी नगरी के वन में आए। (गा. 106 से 122) उस समय मद्यपान से, लवण सहित भोजन करने से, ग्रीष्मऋतु के योग से, श्रम से, शोक से, और पुण्य के क्षय से कृष्ण को बहुत प्यास लगी। इससे 294 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy