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________________ वस्त्र बुनने के लिए पान तैयार कर।' केतुमंजरी क्रोधित होकर बोली कि 'अरे कोली! क्या तू मुझे नहीं पहचानता? 'यह सुनकर वीरक ने रस्सी से केतुमंजरी को निःशंक होकर मारा। इससे वह रोती-रोती कृष्ण के पास गई और अपने अपमान की बात कह सुनाई। तब कृष्ण ने कहा कि 'हे पुत्री! तूने स्वामिनी छोड़ कर दासीपना माँगा, तो अब मैं क्या करूँ? तो बोली- पिताजी! तो अभी भी मुझे स्वामित्व ही दे दो।' तब कृष्ण बोले कि 'अब तू वीरक के आधीन है, मेरे आधीन नहीं है। जब केतुमंजरी ने अत्यन्त आग्रह से कहा, तब कृष्ण ने वीर को समझाकर केतुमंजरी की अनुमति से श्री नेमिप्रभु के पास उसे दीक्षा दिला दी। (गा. 225 से 239) __एक बार कृष्ण ने सर्व (१८०००) साधुओं को द्वादशावर्त वंदना करनी चालू की। तब दूसरे राजा तो थोड़े ही मुनियों को वंदन से निर्वेद पाकर अर्थात् थककर बैठ गए। परंतु कृष्ण के अनुवर्तन से उस वीर बुनकर ने तो सर्व साधुओं को द्वादशावर्त वंदना की। कृष्ण ने प्रभु से कहा कि ‘सर्व मुनियों को द्वादशावर्त वंदन करने से आज मुझे जितना श्रम हुआ है उतना श्रम तीन सौ साठ युद्ध करने में भी मुझे नहीं हुआ था। तब सर्वज्ञ प्रभु बोले कि हे वासुदेव! तुमने आज विपुल पुण्य, क्षायिक समकित और तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया है और सातवीं नरक के योग्य कर्म पुद्गलों को खपाकर तीसरी नरक के योग्य आयुष्य का बंध कर लिया है। जिसे तुम इस भव के प्रांत भाग में निकाचित करोगे। कृष्ण ने कहा'हे भगवन्! अब पुनः सर्व मुनियों को वंदना कर लूँ जिससे पूर्व की भांति मेरी नरक का आयुष्य भूल से ही क्षय हो जाय। प्रभु बोले- 'हे धर्मशील! अब जो वंदना करोगे तो द्रव्यवंदना होगी और फल तो भाववंदना से मिलते हैं, अन्यथा नहीं मिलता। तब कृष्ण ने उस वीरा बुनकर द्वारा की गई मुनि वंदना के फल के विषय में पूछा, तब प्रभु बोले- 'इसने वंदना की वह मात्र शरीर क्लेश जितना फल दायक हुआ है। क्योंकि उसने तो तुम्हारे अनुयायी रूप में भाव के बिना वंदन किया है। कृष्ण प्रभु को नमन करके उनके वचनों का विचार करते हुए परिवार सहित द्वारिकापुरी में आ गये। (गा. 240 से 248) कृष्ण के ढंढणा नाम की स्त्री से ढंढण नामका पुत्र हुआ था। उसने युवावस्था में बहुत सी राजकुमारियों से विवाह किया था। एक बार श्री नेमिनाथ प्रभु से धर्म श्रवण करके उसने संसार से विरक्त होकर दीक्षा ली। उस समय त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 283
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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