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________________ होती रहेगी, यह तो अच्छा नहीं रहेगा। इसलिए दूसरी पुत्रियाँ ऐसे बोले नहीं, ऐसा उपाय करूँ। ऐसा सोचकर कृष्ण ने उस वीर कुंविद को बुलाकर-कहा कि तूने कुछ भी उत्कृष्ट पराक्रम किया है ? उसने कहा कि 'मैंने तो कुछ भी पराक्रम नहीं किया।' कृष्ण ने कहा- सोचकर कह, कुछ तो किया ही होगा? तब उस वीर ने विचार करके कहा कि 'पहले बदरी (बोर) वृक्ष के ऊपर रहे गए एक गिरगिट को मैंने पत्थर मारकर गिरा दिया था, और फिर वह मर गया था। एक मैंने रास्ते में गाड़ी के पहिये के पड़े निशानों में जल को बायें पैर से रोक रखा था। एक बार घड़े में मक्खियाँ घुस गई थी, उस घड़े के मुँह को मैंने बांये हाथ से बंद कर दिया था, और बहुत देर तक गुनगुनाहट करती उन मक्तिखयों को उसमें भर कर रख दिया था। (गा. 211 से 224) दूसरे दिन कृष्ण सभास्थान में जाकर सिंहासन पर बैठकर राजाओं से बोले कि 'हे राजाओं! वीर कविंद का चरित्र अपने कुल के योग्य नहीं है, अर्थात् अधिक पराक्रम वाला है।' तब कृष्ण ने 'चिरंजीवी रहो' ऐसे बोले तो नृपतिगण सुनने के लिए सावधान हो गए। कृष्ण ने इस प्रकार कहना प्रारंभ किया कि 'जिसने भूमिशस्त्र से बदरी के वृक्ष पर रहे हुए लाल फण वाले नाग को मार डाला था, वह यह वीर वास्तव में क्षत्रीय है। चक्र से खुदी हुई और कलुषित जल को वहन करती गंगानदी जिसने अपने वाम चरण से रोक रखी थी, वह यह वीर कुविंद वास्तव में क्षत्रिय है, और उसने घटनगर रहने वाली घोष करती हुई सेना को एक वाम कर से ही रोककर रखी थी, वह यह वीर वास्तव में क्षत्रिय है, इससे यह पुरुषव्रतधारी वीरक वास्तव में मेरा जमाता होने योग्य है। इस प्रकार सभाजनों को कहकर कृष्ण ने उस वीरक को कहा कि 'तू इस केतुमंजरी को ग्रहण कर। वीर के ऐसा करने का निषेध करने पर कृष्ण ने भृकुटि चढ़ाई, इससे वह तत्काल ही केतुमंजरी से विवाह कर उसे अपने घर ले गया। केतुमंजरी उसके घर पर शय्या पर ही बैठी रहने लगी और वह बिचारा वीरक रात-दिन उसकी आज्ञा में रहने लगा। एक बार कृष्ण ने वीरक को पूछा- क्या केतुमंजरी तेरी आज्ञा में रहती है ? तब वह बोला कि – मैं उसकी आज्ञा में रहता हूँ। कृष्ण ने कहा- यदि तू तेरा सब काम उससे नहीं कराएगा तो मैं तुझे कारागृह में डाल दूंगा। कृष्ण के आशय को समझ कर वीरक घर आया और उसने केतुमंजरी को कहा, 'अरे भाग्यवान! तू बैठी कैसे रहती है ? 282 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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