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________________ किरणों से सूर्य की तरह नकुल ने अस्त्रों से उलूक राजा को रथ रहित करके बहुत हैरान किया। तब वह दुर्भषण के रथ में चला गया। द्रोपदी के सात्यकि युक्त पाँचों पुत्रों ने दुर्भषण आदि छहों वीरों को विद्रवित किया तब वे दुर्योधन के शरण में गये दुर्योधन, काशी आदि राजाओं के साथ मिलकर अर्जुन के समक्ष युद्ध करने आया। देवताओं से इन्द्र की तरह राम के पुत्रों से घिरा हुआ अर्जुन ने विचित्र बाणों से शत्रु की सेना का बहुत नाश किया। तब अन्य शत्रुओं को अंध करके मानो दुर्योधन का दूसरा प्राण हो ऐसे जयद्रथ को अर्जुन ने बाण से मार डाला। यह देखकर अधर को डंसता कर्ण अर्जुन को मारने के लिए कान तक कालपृष्ट धनुष खींचकर पीरपृच्छा करता हुआ दौड़ता आया। देवताओं द्वारा कुतूहल से देखे गए कर्ण और अर्जुन ने पासों की तरह बाणों से बहुत समय तक क्रीड़ा की। अर्जुन ने अनेक बार रथ को तोड़कर अस्त्रहीन हो जाने पर मात्र खड्ग को धारण करके रहे हुए वीरकुंजर कर्ण को अवसर देखकर मार डाला। उसी क्षण भीम ने सिंहनाद किया, अर्जुन ने शंख फूंका और जीत प्राप्त करने वाले सर्व पांडवों के सैनिकों ने विजय की गर्जना की। यह देख अभिमानी दुर्योधन क्रोधांध होकर गजेन्द्र की सेना लेकर भीमसेन को मारने दौड़ा। भीम ने रथ के साथ रथ, अश्व के साथ अश्व, हाथी के साथ हाथी भिड़ा कर दुर्योधन की सेना को निःशेष कर दिया। इस प्रकार उनके साथ युद्ध करते हुए जैसे मोदक दुधित भोजन करते हुए ब्राह्मणों की तरह भीमसेन की युद्धक्षुधा पूर्ण नहीं हुई। इनमें में तो अपने वीरों को आश्वासन देता हुआ वीर दुर्योधन हाथी के सामने जैसे हाथी आता है वैसे भीमसेन के सामने आया। मेघ की तरह गर्जना करते हुए और केशरी की तरह क्रोध करते हुए वे दोनों वीर विविध आयुधों से बहुत समय तक युद्ध करते रहे। अंत में भीम ने द्यूतक्रीड़ा का वैर स्मरण करके बजनदार गदा उठाकर उसके प्रहार से घोड़े, रथ और सारथि सहित दुर्योधन को चूर्ण कर दिया। (गा. 327 से 341) दुर्योधन मारा गया तो उसके अनाथ सैनिक हिरण्यनाभ सेनापति की शरण में चले गये। इधर वाम और दक्षिण दोनों ओर रहे सर्व यादवों और पांडवों ने सेनापति अनावृष्टि को घेर लिया। तब वाहण के अग्रभाग में उसका निर्यामक आता है, वैसे हिरण्यनाभ क्रोध से यादवों पर आक्रमण करता हुआ सेना के आगे आ गया। उसे देख कर अमिचंद्र बोला, 'अरे विट! तू क्या इतना त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 229
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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