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________________ डाला। अर्जुन ने दुर्योधन के सारथि को तथा घोड़े को मार डाला, रथ को तोड़ दिया और उसका कवच पृथ्वी पर गिरा डाला। जब शरीर मात्र शेष रहा तब दुर्योधन अत्यन्त खिन्न हो गया। पैदल जैसे स्थिति हो जाने पर पक्षी की तरह वेग से दौड़कर शकुनि के रथ पर चढ़ गया। इधर अर्जुन ने जैसे मेघ ओलो की वृष्टि से हाथियों पर उपद्रव करता है वैसे बाणों की वृष्टि से काशी प्रमुख दसों राजाओं को आक्रांत किया। शल्य ने एक बाण से युधिष्ठिर के रथ की ध्वजा तोड़ डाली। तब युधिष्ठिर ने उसका बाण सहित धनुष ही तोड़ डाला। तो शल्य ने दूसरा धनुष लेकर वर्षाऋतु जैसे मेघ से सूर्य को ढंक देती है, वैसे बाणों से युधिष्ठिर को ढंक दिया। युधिष्ठिर ने अकाल में जगत् को प्रक्षोम करने वाली विद्युत् जैसी एक दुःसह शक्ति शल्य के ऊपर डाली। शत्रु ने उसको छेदने के लिए बहुत से बाण मारे तो भी वह शक्ति अस्खलित रूप से आकर जैसे वज्र बिरता है, वैसे शल्य के ऊपर गिरी। जिससे तत्काल ही शल्य का वध हो गया। उसके पश्चात् बहुत से राजा वहाँ से भाग छूटे। भीम ने भी क्रोधिक होकर दुर्योधन के भाई दुःशासन को चूत में कपट से विजय का स्मरण करा कर सहन में मार डाला। गांधार को मायावी युद्धों से और अस्त्रों के युद्धों से अतियुद्ध करे हुए सहदेव ने क्रोध से उस पर जीवन का अंत करे वैसा बाण मारा। वह बाण शकुनि पर नहीं गिरा। इतने में तो दुर्योधन ने क्षत्रियों का आचार छोड़कर अधर से ही एक तीक्ष्ण बाण छोड़कर उसे काट डाला। यह देख सहदेव बोला, 'अरे दुर्योधन द्यूतक्रीड़ा की तरह रण में भी तू छल कर रहा है।' अथवा अशक्त पुरुषों का छल ही बल होता है। परंतु अब तुम दोनों एक साथ आए हो, यह ठीक हुआ। मैं तुम दोनों को एक साथ ही मार डालूँगा। तुम दोनों को वियोग ही नहीं होगा। इस प्रकार कहकर सहदेव ने तोती से बन की तरह तीक्ष्ण बाणों से दुर्योधन को ढंक दिया। दुर्योधन ने भी बाणों से सहदेव को पीड़ित किया और रणभूमि में महावृक्ष रूपक मूलभूत उसके धनुष को तोड़ डाला। उसने सहदेव को मारने के लिए यमराज के जैसा एक मंत्राभिषिक्त अमोघ बाण फेंका, यह देखकर अर्जुन ने गरुड़ास्त्र डालकर दुर्योधन को जीतने की आशा के साथ उसका बीच में ही निवारण कर दिया। तब शकुनि ने धनुष चढ़ाकर पर्वत को मेघ की तरह बाण वृष्टि से सहदेव को ढंक दिया। तब सहदेव ने भी शकुनि के रथ, घोड़े और सारथि को मार कर उसका मस्तक भी वृक्ष के फल की भांति काट डाला। (गा. 304 से 326) 228 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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