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________________ दिया। जिससे वह चंडाल एक महिने का अनशन करके मृत्यु पाकर नंदीश्वरद्वीप में देवता बना और कुतिया प्रतिबोध अनशन कर मृत्यु को प्राप्त होने से शंखपुर में सुदर्शना नाम की राजकुमारी हुई । पुनः महेंद्र मुनि वहाँ आये, तब अर्हदास के पुत्रों ने चंडाल और कुतिया की गति के विषय में पूछा । तब उन्होंने दोनों की सद्गति के विषय में कह सुनाया। उन्होंने शंखपुर जाकर राजपुत्री सुदर्शन को प्रतिबोध दिया, जिससे उसने दीक्षा ली और मृत्यु के पश्चात देवलोक में गई । पूर्णभद्र और माणिभद्र गृहस्थधर्म पालकर मृत्युपरांत सौधर्म देवलोक में इंद्र के सामानिक समान ऋद्धिवाला देवता हुआ। वहाँ से च्यवकर हस्तिनापुर में विश्वसेन राजा के मधु • और कैटभ नाम के दो पुत्र हुए। पहला नंदीश्वर देव के वहाँ से च्यव कर चिरकाल तक भवभ्रमण करके वटपुरनगर में कनकप्रभ राजा की चंद्राभा नाम की पटरानी हुई। राजा विश्वसेन ने मधु को राज्यपद पर और कैटभ को युवराज पद पर स्थापित करके दीक्षा ली । मृत्यु के पश्चात ब्रह्मदेवलोक में देवता हुए। मधु और कैटभ ने समग्र पृथ्वी वश में कर ली। (गा. 192 से 202) उनके देश पर भीम नामक एक पल्लीपति उपद्रव करने लगा। मधु उसे मारने को चला। वहाँ मार्ग में वटपुर के राजा कनकपुत्र ने भोजनादि से उसका सत्कार किया। फिर स्वामिभक्ति से सेवक रूप से व्यवहार करता वह राजा चंद्राभा रानी के साथ भोजन के अंत में उनके पास आया और अनेक भेंट दी। चंद्राभा रानी मधु को प्रणाम करके अंतःपुर की ओर चल दी, उस समय कामपीडित मधु ने उसे बलात् पकडने की इच्छा की, उस समय मंत्री ने उसे रोका । तब मधु राजा आगे चला। भीम पल्लिपति को जीत कर वापिस लौटते समय वह वटपुर में आया । राजा कनकपुत्र ने भी पुनः उसका सत्कार किया। जब वह भेंट लेकर आया तब वह मधुराजा बोला, तुम्हारी दूसरी भेंट मुझे नहीं चाहिए, मुझे तो यह चंद्राभा रानी अर्पण करो । उसकी इस मांग से अब कनकप्रभ ने अपनी रानी उसे नहीं दी, तब वह बल से चंद्राभा रानी को खींच कर उसके नगर में चला गया। रानी के वियोग से व्यथित हुआ वह कनकप्रभ राजा मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। थोडी देर में होश आने पर वह जोर जोर से विलाप करने लगा और उन्मत की भांति इधर उधर घूमने लगा। 190 (गा. 202 से 209) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व )
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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