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________________ विश्व में अद्वितीय वीर पुत्र होगा। तुम से इस स्वप्न की बात सत्यभामा की एक दासी ने सुनी। तत्क्षण उसने भी एक स्वप्न की कल्पना करके कृष्ण के पास जाकर कहा कि आज मैंने स्वप्न में ऐरावत हाथी जैसा हाथी देखा है। कृष्ण उसकी इंगिल चेष्टा से यह जान लिया कि यह कथन झूठा है परंतु सत्यभामा को कुपित नहीं करना ऐसा विचार करके कहा कि तेरे भी शुभ पुत्र होगा। दैवयोग से सत्यभामा ने भी गर्भ धारण किया और उसके उदर की वृद्धि होने लगी । रूक्मिणी के उदर में तो उत्तम गर्भ था, इसलिए उसका उदर तो जैसा था वैसा ही रहा, गूढ रीति से गर्भ में वृद्धि होने लगी । इससे एक दिन सत्यभामा ने कृष्ण से कहा कि इस तुम्हारी पत्नी ने झूठ-मूठ में गर्भ धारण की बात कही थी क्योंकि हम दोनों के ही उदर देखो। एक वक्त दासी ने आकर बधाई दी कि रूक्मिणी देवी ने सुवर्ण जैसी कांतिवाला महात्मा पुत्र को जन्म दिया है। यह सुनकर सत्यभामा खिन्न और क्रोध विह्वल हो गई । वहाँ से अपने महल में आने पर उसने भी भानुक नामक पुत्र को जन्म दिया। (गा. 118 से 127) कृष्ण पुत्र जन्म की बधाई से हर्षित होकर रूक्मिणी के मंदिर में गये और बाहर सिंहासन पर बैठकर पुत्र को मंगवाकर देखा । पुत्र की कांति से सर्व दिशा में प्रदीप्त हुई देखकर उसका प्रद्युम्न नाम रखा और कृष्ण उसे दुलराने के लिए क्षणभर वहाँ बैठे। उस समय पूर्व भव के बैर से धूमकेतु नामक एक देव रूक्मिणी का वेश बनाकर कृष्ण के पास आया और कृष्ण के पास से उस बालक को लेकर वैताढ्य गिरि पर चला गया । वहाँ भूतरमण उद्यान में जाकर टंकशिला पर बैठकर विचार करने लगा कि इस बालक को इस पर पटक पटक मर मार डालूँ ? परंतु नहीं, इससे तो वह बहुत दुखी होगा इसलिए इस शिला पर रखकर चला जाउँ। जिससे निराधार और दुग्धातुर क्रंदन करता हुआ मर जाएगा। ऐसा विचार कर उसे वहीं पर छोड़कर चला गया। वह बालक चरमदेही था और निरूपक्रम आयुष्य वाला था । (गा. 128 से 133) इससे वह उस शिला पर से बहुत से पत्तों वाले प्रदेश में निराबाध रूप से गिर पडा । अतः कालसंवर नाम के कोई खेचर विमान में बैठकर अग्निज्वाल नगर से अपने नगर में जा रहा था । उसका विमान वहाँ गिर गया । खेचरपति ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) 185
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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