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________________ लेकर बीच में आवे उसे भी उस जैसा ही दोषित गिनकर मेरी आज्ञा से मार डालो। उस समय क्रोध से लाल नेत्र करके कृष्ण ने कहा अरे पापी! चाणूर को मारा फिर अभी भी तू खुद की आत्मा को मरा हुआ नहीं मान रहा। तो प्रथम मेरे द्वारा नाश होते तेरी आत्मा की अब तू रक्षा कर तब क्रोध करके नंद आदि के लिए आज्ञा करना। ऐसा कहकर कृष्ण उछाल मार कर मंच पर चढकर केशों से पकड़कर कंस को पृथ्वी पर पटक दिया। उसका मुकुट पृथ्वी पर गिर पड़ा, वस्त्र खिसक गए और नेत्र भय से संग्रम हो गये। कसाई के घर बांधे हुए पशु की तरह उस कंस को कृष्ण ने कहा, अरे अधम! तूने तेरी रक्षा के लिए वृथा ही गर्भ हत्याएँ करी, अब तू ही रहने वाला नहीं है। ___ (गा. 301 से 308) ___अब अपने कर्म का फल भोग। उस समय उन्मत हाथी की सिंह पकड़े वैसे हरि ने कंस को पकड़ा हुआ देख सब लोग आश्चर्यचकित हो गये और अंतर में डरने लगे। उसी समय राम ने बंधने से श्वासरहित करके यज्ञ में लाए हुए पशु की तरह मुष्टिक को मार डाला। इतने में कंस की रक्षा करने के लिए रहे हुए कंस के सुभट विविध प्रकार के आयुधों का हाथ में लेकर कृष्ण को मारने के लिए दौड़े। तो राम ने एक मंच के स्तंभ को उखाड़कर हाथ में लेकर मधुमक्खी के छते पर से मक्खियां उड़ावें वैसे उन सब को भगा दिया। तब कृष्ण ने मस्तक पर चरण रखकर कंस को मार डाला और गंदगी को समुद्र बाहर फेंक देता है वैसे उसे केश से खींचकर रंगमंडप से बाहर फेंक दिया। कंस ने पहले ही जरासंध के सैनिक बुला रखे थे। वे राम कृष्ण को मारने के लिए तैयार होने लगे। उनको तैयार होते देख राजा समुद्रविजय भी तैयार हो युद्ध करने के लिए आए क्योंकि उनका आगमन उनके लिए ही था। जब उद्वेल समुद्र की तरह राजा समुद्रविजय उठकर वहाँ आये तो जरासंध के सैनिक दसों दिशाओं में भाग गये। (गा. 309 से 316) अनाधृष्टि समुद्रविजय की आज्ञा से बलराम कृष्ण को अपने रथ में बिठकार वसुदेव के घर ले गया। सर्व यादव और समुद्रविजय आदि भी वसुदेव के घर गए और वहाँ एकत्रित होकर सभा करके वहाँ बैठे। वसुदेव अर्धासन पर बलराम को और उत्संग में कृष्ण को लेकर नेत्र में अश्रु लाकर उनके मस्तक पर पुनः पुनः चुंबन करने लगे। उस समय वसुदेव के अग्रज सहोदर बंधुओं ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 169
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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