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________________ दूसरे राजा तो स्पर्श तक भी कर सकते थे। ऐसा सुनते ही वसुदेव ने आक्षेप से कहा कि तब तो तू शीघ्र ही चला जा क्योंकि तुझे धुनष चढाने वाला जानेगा तो कंस तत्काल ही तुझे मार डालेगा। ऐसा सुनकर अनाधृष्टि भयभीत होकर घर से शीघ्र बाहर निकला और कृष्ण के साथ जल्दी जल्दी नंद के गोकुल में आया, वहाँ से राम कृष्ण की आज्ञा लेकर अकेला शौर्यपुर गया। (गा. 234 से 243) इधर लोगों में बातें होने लगी कि नंद के पुत्र ने धनुष चढाया। उस धनुष को चढाने से कंस अत्यंत खेदित हुआ। फलस्वरूप धनुष के महोत्सव के स्थान पर बाहयुद्ध करने के लिए सर्व मल्लों को आज्ञा दी। इस प्रसंग पर आमंत्रित राजा मल्लयुद्ध देखने की इच्छा से मंच पर आ आकर बैठ गये और बडे मंच पर बैठे हुए कंस के समक्ष दृष्टि रखने लगे। कंस का दुष्ट भाव जानकर वसुदेव ने अपने सर्व ज्येष्ठ बंधुओं को और अक्रूर आदि पुत्रों को भी वहाँ बुलाया। तेजस्वी सूर्य के सदृश तेजस्वी उन सभी का कंस ने सत्कार करके ऊँचे मंच पर बैठाया। __(गा. 244 से 247) ___ मल्लयुद्ध के उत्सव की वार्ता सुनकर कृष्ण ने राम से कहा, आर्य बंध! चलो अपन मथुरा में जाकर मल्ल युद्ध का कौतुक देखें। यह स्वीकार करके राम ने यशोदा से कहा- माता! हमको मथुरापुरी जाना है, इसलिए हमारे स्नानादि की तैयारी करो। उसमें यशोदा को कुछ अनुत्साहित देखकर बलदेव ने कृष्ण द्वारा होने वाले मातृवध की प्रस्तावना करने के लिए हो वैसे आक्षेप से कहा, अरे यशोदा! क्या तू पूर्व का दीप्तीभाव भूल गई? जो हमारी आज्ञा को जल्दी करने में देरी करती है। राम के ऐसे वचनों से कृष्ण के मन में बहुत दुख हुआ इससे वे निस्तेज हो गए। उनको बलराम यमुदा नदी में स्नान कराने को ले गए। वहाँ राम ने कृष्ण को पूछा हे वत्स! चौमासे के मेघवायु के स्पर्श से दर्पण की तरह तुम निस्तेज कैसे लगते हो? (गा. 248 से 253) कृष्ण ने बलदेव को गद गद स्वर में कहा, भद्र! तुमने मेरी माता यशोदा को आक्षेप से दासी कहकर क्यों बुलाया? तब राम ने मिष्ट और मनोहर वचनो से कृष्ण को कहा, वत्स! वह यशोदा तेरी माता नहीं है नंद पिता नहीं है परंतु देवक राजा की पुत्री देवकी तुम्हारी माता हैं और विश्व में अद्वितीय हैं वीर और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 165
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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