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________________ बडा उत्सव प्रारंभ किया। कंस ने ऐसी घोषणा कराई कि जो इस शार्ड धनुष को चढाएगा उसे यह देवांगना जैसी सत्यभामा दी जावेगी। यह घोषणा सुनकर दूर दूर से बहुत से राजा वहाँ आए परंतु कोई भी उस धनुष को चढ़ाने में समर्थ हुआ नहीं। ये समाचार वसुदेवी की स्त्री मदनवेगा के पुत्र अनाधृष्टि ने सुनी तो वह वीरमानी कुमार वेग वाले रथ में बैठकर गोकुल में आए। (गा. 222 से 226) वहाँ राम और कृष्ण को देखकर उनके आवास में एक रात्रि आनंदवार्ता करने को कहा। प्रातःकाल अनुज बंधु राम को वहाँ छोड कर मथुरा का मार्ग बताने के लिए कृष्ण को साथ लेकर वहाँ से चला। बड़े-बड़े वृक्षों के कारण संकीर्ण हुए मार्ग पर चलते हुए उनका रथ एक बड़ के एक वृक्ष से जा टकराया। उस रथ को छुडाने में अनाधृष्टि समर्थ नहीं हुआ। उस समय पैदल चलते हुए कृष्ण ने लीलामात्र से उस वड़ वृक्ष को उखाड़ फेंक दिया और रथ का मार्ग सरल कर दिया। अनाधृष्टि कृष्ण का पराक्रम देखकर बहुत खुश हुआ इसलिए वह रथ से नीचे उतर कर उसने कृष्ण का आलिंगन किया और रथ में बैठाया। अनुक्रम से यमुना नदी पार कर मथुरानगरी में प्रवेश करके जहाँ पर अनेक राजागण बैठे थे, ऐसी शार्ड धनुष वाली सभा में वे आए। वहाँ मानो धनुष के अधिष्ठात्री देवता हो ऐसी कमल लोचना सत्यभामा उनको दिखाई दी। (गा. 227 से 233) सत्यभामा ने कृष्ण के सामने सतृष्ण दृष्टि से देखा और उसी क्षण वह कामदेव के बाण से पीड़ित होकर उसने मन ही मन में कृष्ण का वरण कर लिया। प्रथम अनाधृष्टि धनुष के पास जाकर उसे उठाने लगा, किंतु पंकिल भूमि में पैर फिसल गया हो, उसी भांति वह ऊँट की तरह पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसका हार टूट गया, मुकुट गिर गया और कुंडल भी गिर पड़े। यह देख सत्यभामा स्वल्प और अन्य सभी विकसित नेत्रों से खूब हंसने लगे। इन सभी के हास्य को सहन नहीं करके कृष्ण ने पुष्पमाला की तरह सहजता से ही उस धनुष को उठा लिया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ा ली। कुंडलाकार करे उस तेजस्वी धनुष से इंद्रधनुष की तरह नवीन बरसते मेघ की तरह सुशोभित होने लगे। अनाधृष्टि ने घर जाकर द्वार के पास रथ में कृष्ण को बैठाकर खुद अकेला घर में गया और पिता वसुदेव को कहा कि हे तात! मैंने अकेले ने शार्ड धनुष को चढा दिया है जिसे 164 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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