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________________ बांधकर पंच नमस्कार का स्मरण करके घोड़ों की लगाम खींची। अश्व के हृदय को जानने वाले नल द्वारा चलाए गए वे रथ देवविमान की तरह स्वामी के मन के वेग से चलता। इतने में वेग से चलते रथ के पवन द्वारा दधिपर्ण राजा का उतरीय वस्त्र उड़ गया, मानो उसने नलराजा का अवतरण किया हो, वैसे दिखने लगे। दधिपर्ण ने कहा रे कुब्ज । क्षणभर के लिए रथ को रोक दे, जिससे पवन से उडा हुआ मेरा वस्त्र ले सकूँ । तब कुबड़ा हंस कर बोला- हे राजन्! आपका वस्त्र कहां है? उसके गिरने के पश्चात तो हम पच्चीस योजन दूर आ चुके हैं। उसे देखकर उसने कुब्ज सारथि को कहा कि इस वृक्ष पर जितने फल हैं, उन्हें गिने बिना भी मैं बता सकता हूँ। (गा. 995 से 1005) यह कौतुक मैं लौटते समय तुझे बताउंगा। कुब्ज ने कहा हे राजन्! आप कालक्षेप का भय किसलिए रखते हो ? मेरे जैसा अश्व के हृदय को जानने वाला सारथि होने पर यह भय रखना नहीं और मैं तो एक मुष्टि के प्रहार से वृक्ष के सर्व फलों को मेघ के जलबिंदु के समान पृथ्वी पर आपके सामने ही गिरा दूँ। तब राजा ने कहा यदि ऐसा है तो रे कुब्ज ! तू ये फल गिरा दे ये संख्या में ठीक अट्ठारह हजार होंगे, यह कौतुक देख । तब कुब्ज ने उनको गिरा दिये और राजा ने वे गिने तो बराबर अट्ठारह हजार हुए, एक भी अधिक या कम हुआ नहीं। कुब्ज ने दधिपर्ण की याचना से अश्वहृदय विद्या उसे दी और उसके पास से संख्यविद्या यथाविधि स्वंय ने ग्रहण की। प्रातः काल होने पर तो जिनका सारथि कुब्ज है, ऐसा रथ विदर्भनगरी के पास आ पहुंचा। यह देखकर राजा दधिपर्ण का मुख कमल के समान विकसित हो गया । (गा. 1006 से 1012) इधर इसी समय वैदर्भी ने रात्रि के शेष भाग में एक स्वप्न देखा । तब हर्षित होकर अपने पिता के समक्ष इस प्रकार कह सुनाया कि आज रात्रि के शेष भाग में जब मैं सो रही थी, इतने में निवृति देवी के द्वारा कोशलानगरी का उद्यान आकाशमार्ग से यहाँ लाया हुआ मैंने देखा । इतने में एक पुष्पों और फलों से सुशोभित आम्रवृक्ष मैंने देखा । उसकी आज्ञा से मैं उस पर चढ गई । पश्चात उस देवी ने मेरे हाथ में एक प्रफुल्लित कमल दिया। मैं जब वृक्ष पर चढी तब उस समय कोई एक पक्षी, जो कि पहले से ही उस पर चढा हुआ था, वह तत्काल त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) 139
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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