SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस प्रकार निर्णय करके भीमराजा ने दूत भेजकर सुसुमारपुर के दधिपर्ण को पंचमी के दिन दवदंती के स्वंयवर में आने का आमंत्रण भेजा। इसलिए कुंडिनपुर आने के लिए तत्पर हुआ दधिपर्ण राजा मन में सोचने लगा कि मैं वैदर्भी को प्राप्त करने का बहुत दिनों से इच्छुक हूँ। अब उसे प्राप्त करनेका अवसर आया, परंतु वह तो दूर है और स्वंयवर तो कल ही है, कल ही इतनी दूर कैसे पहुँचा जाए? अब क्या करूँ? ऐसी चिंता से वह थोडे पानी में मछली तड़पे जैसे तड़पने लगा। (गा. 985 से 986) यह समाचार सुनकर कुब्ज विचार में पड़ गया कि सती दमयंती दसरे पुरूष की इच्छा ही नहीं कर सकती। तो मेरे होते तो उसे दूसरा कौन ग्रहण करा सकता है। इसलिए इस दधिपर्ण राजा को मैं वहाँ छः प्रहर में ही ले जाऊँ, जिससे उनके साथ मेरा भी प्रासंगिक गमन हो जावे। तब उसने दधिपर्ण को कहा तुम अति खेद या फिक्र मत करो, खेद या चिंता का जो कारण हो वह कहो क्योंकि रोग की बात कहे बिना रोगी की चिकित्सा होती नहीं है। दधिपर्ण ने कुब्ज को कहा नलराजा की मृत्यु हो गई है, इससे वैदर्भी दूसरी बार स्वंयवर कररही है। चैत्र मास की शुकू पंचमी को उसका स्वंयवर है। उस बीच मात्र छः प्रहर शेष हैं, इतने से समय में मैं वहाँ किस प्रकार पहुँचू ? उनका दूत वहाँ से बहुत दिनों में जिस मार्ग से यहां आया मैं उस मार्ग से डेढ दिन में कैसे पहुंच सकता हूँ। इसलिए मैं तो दमयंती में व्यर्थ में ही लुब्ध हो रहा हूं। कुबड़े ने कहा हे राजन्! आप जरा भी खेद मत करो। आपको थोड़े ही समय में वहाँ पहुंचा दूं, इसलिए मुझे आप अश्व सहित रथ दो। __ (गा. 987 से 994) राजा ने कहा स्वेच्छा से ही रथाश्व को ले आ। तब नल ने उत्तम रथ सर्व लक्षणों से लक्षित दो जातिवंत घोड़े ले लिए। उसकी सर्व कार्य में कुशलता देखकर दधिपर्ण विचार में पड़ गया कि यह कोई सामान्य पुरुष नहीं है, यह देव या कोई खेचर हो ऐसा लगता है। रथ में घोड़ो को जोतकर कुब्ज ने राजा को कहा अब रथ में बैठो, मैं तुमको प्रातःकाल में विदर्भानगरी में पहुँचा दूंगा। तब राजा तांबूलवाहक, छत्रधारक, दो चंवरधारी और कुब्ज इस प्रकार छःओ लोग सज्जित होकर रथ में बैठे। कुब्ज ने वो श्रीफल और करंडक को वस्त्र से कटि पर 138 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy