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________________ इस प्रकार प्रधान पुरूषों ने बारंबार प्रार्थना की तब नलराजा दवदंती के साथ रथ में बैठकर नगर के बाहर निकले। मानो स्नान करने के लिए तैयार हुई हो वैसे एक वस्त्र पर कर जाती हुई दवदंती को देखकर नगर की सर्व स्त्रियाँ अश्रुजल से कांचलियों को आर्द्र करती हुई रोने लगी। नलराजा नगर के मध्य से होकर गुजर रहे थे, उस समय दिग्गज के आलान स्तंभ जैसा पाँच सौ हाथ ऊँचा एक स्तंभ उनको दिखाई दिया। उस समय राज्यभ्रष्ट होने के दुख को मानो न जानते हो वैसे कौतुक से उन्होंने कदली स्तंभ को हाथी उखाड़े वैसे लीलामात्र से उस स्तंभ को उखाड दिया और पुनः उसे वही आरोपण कर दिया। जिससे उसे उठाकर बैठाने रूप राजाओं के व्रत को सत्य कर बताया। यह देख नगरजन कहने लगे कि अहो! इन नलराजा का कैसा बल है? ऐसे बलवान पुरूष को भी ऐसा दुख प्राप्त होता है, इसमें देवेच्छा ही बलवान है ऐसा निर्णय होता है। पूर्व में बाल्यावस्था में भी नलराजा समीप के पर्वत उद्यान में कुबेर सहित क्रीड़ा कर रहे थे, उस वक्त ज्ञानरत्न के महानिधि कोई महर्षि आये थे। उन्होंने कहा था कि यह नल पूर्व जन्म में मुनि को दिये क्षीर दान के प्रभाव से भरतार्ध का अधिपति होगा अन्य और इस नगरी में स्थित पांच सौ हाथ ऊचे स्तंभ को जो चलायमान कर देगा, वह अवश्य भरतार्ध का अधिपति होगा, और नलराजा के जीते जी इस कौशल नगरी का कोई अन्य भूपति होगा नहीं। उन मुनि के कथनानुसार भविष्य में भरतार्थ का स्वामी होना और इस स्तंभ का उखाडना ये दोनों बातें तो मिल गई परंतु कुबेर का कोशला का राजा होने से तीसरी बात नहीं मिली। परंतु जिसकी प्रतीति अपनी नजरों से देख रहे हैं, उन मुनि की वाणी भी अन्यथा नहीं हो सकती क्योंकि अभी कुबेर भी सूखपूर्वक राज्य करेगा या नहीं यह कौन जानता है ? कदाच पुनः नलराजा ही हमारे राजा हो जावें, अतः पुण्यश्लोक नलराजा का पुण्य सर्वथा वृद्धि पावे इस प्रकार लोगों के वचन सुनता और दमयंती के अश्रुओं से रथ को स्नान कराते नलराजा कोशला नगरी को छोड़कर चल दिये। ___ (गा. 471 से 483) आगे जाकर नल ने दमयंती से कहा कि हे देवी! अपन/हम कहाँ जावें? क्योंकि स्थान का लक्ष्य किये बिना कोई भी सचेतन प्राणी प्रवृत्ति करता नहीं है। दवदंती बोली दर्भ के अग्रभाग जैसे बुद्धिवाले हे नाथ! अपन कुंडिनपुर चलें, वहाँ मेरे पिता के अतिथि होकर रहें उन पर अनुग्रह करो। (गा. 484 से 486) 106 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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