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________________ सहित वहाँ से चल दिया। उस समय दवदंती उसके पीछे पीछे जाने लगी। उसे देखकर कुबेर भंयकर शब्द से बोला- अरे स्त्री! तुझे मैं धूतक्रीडा में जीता हूं अतः तू कहां जा रही है? तू तो मेरे अन्तःपुर को अलंकृत कर। उससमय मंत्री आदि ने दुराश्य कूबर को कहा कि यह महासती दमयंती दूसरे पुरूष की छाया का भी स्पर्श करती नहीं है, अतः तू इस महासती का जाने में अवरोध मत कर। बालक भी जानता है कि ज्येष्ठ बंधु की स्त्री माता समान होती है और जयेष्ठ बंधु पिता समान है। फिर भी यदि तू बलात्कार करेगा तो यह महासती भीमसुता तुझे जलाकर भस्म कर देगी। सतियों के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। इसलिए इस सती को कुपित करके अनर्थ का सजृन मत कर। परंतु पति के पीछे जाती हुई इस सती को उत्साहित कर। तुझे जो गांव नगर आदि सब मिला है, उससे संतुष्ट हो जा और इन नल राजा को पाथेय के साथ एक सारथि सहित रूप दें। मंत्रियों के इस प्रकार के वचन से कुबेर ने दवदंती को नल के साथ जाने दिया। पाथेय के साथ सारथि युक्त भी देने लगा। तब नल ने कहा कि भरतार्थ के विजय से जो लक्ष्मी मैंने उपार्जन की थी, उसे आज मैं क्रीड़ामात्र में छोड़ रहा हूँ तो मुझे एक रथ की भी स्वृहा क्या? मुझे रथ नहीं चाहिए। उस वक्त मंत्रियों ने कहा किहे राजन्! हम आपके चिरकाल से सेवक हैं, इससे हम आपके साथ आना चाहते हैं, परंतु यह कुबेर हमको आने नहीं देता। यह आपका अनुज बंधु है और आपने इसे राज्य दिया है, अब हमारे यह त्याग करने योग्य भी नहीं है, क्योंकि हमारा ऐसा क्रम है कि इस वंश में जो राजा हो उसकी हमको सेवा करनी है। (गा. 45 2 से 465) इससे हे महाभुज! हम आपके साथ आ नहीं सकते। इस समय तो यह दवदंती ही आपकी भार्या, मंत्री, मित्र और सेवक जो मानो वह यह है। सतीव्रत को अंगीकार करने वाली और शिरीष के पुष्प जैसी कोमल इस दवदंती को पैरों से चलाकर आप किस प्रकार ले जायेंगे? सूर्य के ताप से जिस रेत में से अग्नि की चिनगारियां निकलती है, ऐसे मार्ग में कमल जैसे कोमल चरणों द्वारा यह सती कैसे चल सकेगी? इसलिए हे नाथ! इस रथ को ग्रहण करके हम पर अनुग्रह करो। आप देवी के साथ इस रथ में बैठो, आपका मार्ग कुशल हो और आपका कल्याण हो। (गा. 466 से 470) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 105
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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