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________________ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. जन्म थयो जिनराजनो रे वाला, प्रगटी पूर्व पुण्याई रे ॥५॥ ए पढी पुष्प तथा गुलाबजलकी वर्षा करे ॥४॥ ॥(सोरठगे)॥ त्रिनुवन मांहि सुरूप, जन्मसमय जिनराजनें ॥ वाजिन वजत अनूप, सुर नर कृत उत्सव हुवे ॥१॥ * ॥ ॥ * ॥रावण निरत वणावे हो जला एचाल॥ॐ॥ # आज आनंद बधाई रे, देखो, आज आनंद वधाई॥ जयजयकार जयो जिनशासन, सुरकुमरी हरखाई रे ॥ दे० ॥१॥ घरघर गोरी मंगल गावत, मोतियन चोक पुराई रे॥ इति नपद्रव जय सब नागे, खार समुद्रे जाई रे॥ दे० ॥२॥आज सनाथ जयो हे त्रिनुवन, ॥ जिनवर जनम्या जाई रे॥आज अधिक जग हर्ष नयो हे, धन धन माता कहाई रे॥ दे०॥३॥ जन्म महोत्सव करननकुं सब, दिशिकुमरी मिल आईरे ॥ करि कदलीगृह सुंदर रचना, पावन कर नर लाई रे॥ दे० ॥ ४ ॥ जिनज. ननी जिनवर पय प्रणमी, मस्तक आण चढाई रे । स्नान करावत नन्नय श रीरे, तैलाभ्यंग कराई रे ॥ दे० ॥५॥ जूषण नूषित अंग बिलेपन, देव दूष्य पहराई रे॥ दर्पण ले मंगल घट थापी । चामर जुगल ढुलाई रे दे०॥६॥पंचवरनके फूल सुगंधित, सुर कुमरी वरषाई रे॥ होम करी रदापोटरिया, जिनवर करे बंधाई रे॥०॥७॥मंगल गावत जिन जगज ननी, निजगृह मांहे ठाई रे॥ सफल भयो निज आतम जाणी, दिशि कुम री घर आई रे॥०॥८॥8॥ (दूहा)॥अतिहि अधिक नत्सव करी, गइ कुमरी निज थान ॥ इंद्र हवे नत्सव करे, जन्म समय जिन जाण ॥१॥४॥ ॥॥राग गोमी॥सांऊ समे जिन वंदो॥ए देशी॥2॥ *आज नबव मन लायोरे॥देखो माई॥जगजननी जिन जायोरे ॥दे०॥०॥त्रिनुवन मांहि प्रकाश नयो हे, इंद्रासन थररायोरे ॥ दे. ॥आ०॥१॥अवधिज्ञानधर जिनजीकुं निरखत, हृदय कमल नलसायो रे॥ हरिणगमेषी इंद्र हुकमतें, घंट सुघोष घुरायोरे॥दे०॥ आ० ॥ २ ॥ बनठन नवनवरूप मनोहर, सुरसमुदय मन जायोरे॥ सुरकुमरी वरऋषण न
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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