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________________ पांचकल्याणक पूजा. . अवतरे माता नदरनमें ॥ प्रा० ॥१॥ नृपति सदन वहु सुपन शास्त्र विध, अर्थ विचार करि निज गनमें ॥ पुत्र रतन फल वचत नृपति कुल, परम कल्याण होत जनजनमें ॥आ० ॥२॥ प्रफुलित हरख जरत हीय नवसत, जिन जननी सुतात सुन तनमें ॥ दिन दिन बढत प्रवर धन जन मन, अधि क नत्साह घर घरनमें ॥०॥३॥ रूप्प रजत मणि माणक मोतियें, शंख प्रवाल शिल वरसनमें॥ धनद धनद सुरइंद्र हुकमतें, जरत नंमार नृपके सदनमें ॥आ० ॥४॥ताल कंसाल मधु वीण वजावत, गीत गान गावत तन ननमें॥उन्मुनि मुरज मृदंग घन गरजत, गरज गरज मानुं जैसे घनमें । आ०॥५॥ सुर नर लोक मांहे अधिक नत्साह वाह । निशिदिन होत जनजनपदमें ॥इंद्र इंद्राणी नृप दोहद पूरत, मनोरथ होत जो जो मातु मनमें ॥आ० ॥६॥ परम कल्याण शुनयोग संयोग भयो । शुन्न घरि शुन्न ग्रह शुन्न दिनमें ॥ वरण सके न ताहि कवि अवसरकों, आनंद जयो हे तीन जुवनमें ॥आ०॥७॥क्षी श्री परमात्मनेऽनंतानंत झानशक्तिये जन्मजरामृत्युनिवारणाय, श्रीमजिनेंद्राय चवनकल्याणके अष्टद्रव्यं यजा महे स्वाहा ॥ इति प्रथम चवन कल्याणक पूजा॥ * ॥ .. ॥ ॥ ॥॥अथ द्वितीय जन्मकल्याणक पूजा॥2॥ ( दूहा)॥प्रगटे पावन पतित प्रनु, अधम नधारन काज ॥ नृपकु समांहे अवतरे, विन्नुवनके शिरताज ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥राग सोरग॥ * ॥ आज अधिक आनंद नयो रे वाला, आज सुरंग वधाईरे॥आगे जगपति जिनवर जनमिया रे वाला, सुर वधुवन मिल आई रे॥१॥ आगे आज आनंदघन नलट्यो रे वाला, दिशि कुमरी हरखाई रे॥आगे दशदि श निर्मलता थई रेवाला, फूल रही वनराई रे॥२॥आगे फूलें फूली वनलता रेवाला, मधु मालती महकाई रे ॥ शालि प्रमुख सहु धान्यनी रे वाला निपजी राशि सवाई रे ॥३॥ नारकी जीवें नरकमां रे वाला, दाण इक शाता पाई रे॥ सब जन मन हरषित नयो रे वाला, नूमंगल बि गई रे ॥ ४॥शुज़दिन शुभ महूरतघमी रे वाला, शुनग्रह शुन्न पल आई रे॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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