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________________ पंचकल्याणक पूजा. ॥ राग सरपदो ॥जोति सकल जगदीशनी ॥ हारे जगदीशनी ए॥ चार निदेप प्रमाण ॥ नाम जिनादिक जिन कह्या, आगममांहि प्रधान ॥१॥ गाथा ॥ नाम जिणा जिण नामा। उवण जिणा ने जिणंद पमिमा॥ दवजिणा जिण जीवा । जाव जिणा समवसरणत्था ॥१॥॥ ॥ ढाल तेहीज ॥ विन कारण कारज नही, हां रे का० ए ॥ ए सब लोक प्रसिध॥नाव निक्षेप प्रधानता । कारज रूपें सिघ ॥ १ ॥ विण आ कारें द्रव्यनो॥हां०॥द्र० ए॥न हुवे थापन सिध॥ नामविना आकारनो, प्रगट पणे नवि बुद्ध ॥२॥ नामादिक कारण सही ॥ हां०॥ का० ए॥इन विन नाव न होय ॥ नाव विशुधे जिनतणी । पूज करो सहु कोय ॥३॥ व्यवहार निश्चय लहे ॥ हां० नि० ए ॥ कारण कारज होय ॥ पावम शाला कम करी, सौध चढे सहु कोय ॥४॥ॐ॥ ॥ (दूहा)॥झानकला कलितातमा। लोकालोक प्रकाश ॥ व्यापकनावें थिर रह्यो । शुध विकास विलास ॥१॥ * ॥ ॥ राग सारंग ॥ हांहोरे देवा, जोति सकल जिन राजनी। सहु लोका लोक प्रकाश ए॥हांहोरे देवा, राजत श्रीजिनराजनी । वाणी प्रवचन शुन वास ए ॥ १ ॥ हांहोरे देवा, मात नमुं नित्य शारदा । गुरुपंच कल्याणक सार ए॥ हांहोरे देवा, तीर्थकरना वरण, । गुण शास्त्र परंपर धार ए ॥२॥ ..॥ (दूहा)॥शासन नायक जग धणी । त्रिभुवन पति परमेस ॥ पर उपगारी प्रनु तणा, गुण गावत सहु वेस॥१॥ ॥ . ॥ ढाल तेहीज ॥ हांहोरे देवा, वीश थानक करि सेवना, बांध्युं जिन नाम प्रधान ए॥ हांहो०॥ दिव्य अमर सुख अनुन्नवे। प्राये प्रनु पुण्य प्रमाण ए॥१॥ हांहो०॥ निरमल तर वर ज्ञानना ।धारक कारक शुनयोग ए॥ हाहो ॥शब्द वरण रस गंधना । शुन्न फरस तणा वर लोग ए ॥ २ ॥ हांहो । शाश्वत सिघायतण तणा । नित नसव करत सुरंग ए ॥ हांहो०॥ बालचंद पाठक कहे। नित मंगल होत सुचंग ए॥३॥ ॥ ॥ (दूहा) ॥ पुण्य पूर्व नव प्रनुतणो। प्रगट्यो प्रगट प्रनाव ॥ सुरकुमरी नित प्रति करे। नाटक नवनव नाव ॥१॥ ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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