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________________ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. ॥८॥नक्षी श्री लोगोपनोग परिमाण गुण व्रतायनमः॥ ॥९॥नक्षी श्री अनर्थ दंम विरमण गुण व्रतायनमः॥ ॥१०॥ नक्षी श्री सामायक शिदा व्रतायनमः॥ ॥११॥नजी श्री देशावगाशीरूप शिक्षा व्रतायनमः॥ ॥१२॥नक्षी श्री पोषधोपवासरूप शिक्षा व्रतायनमः ॥ ॥१३॥नक्षी श्री अतिथि संविनाग दानरूप शिक्षा व्रतायनमः॥ ॥ ॥ इसीतरै चिठी १३ लिखके स्थापित करै । तीन नवकार गुणके वाशदेपसें प्रतिष्टत करै (और) जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, अक्त, वस्त्र, धजा, अष्टमंगलीक आदि तैरै तेरै, पूजाके लायक द्रव्य १३ थाल्यामें लगाय दो तरफ रखै । पी3 स्नात्र करायके पूजा करावै । जो पद की पूजा सरू होय सो थाली लेतो रहै चढातो रहै ( परंतु ) नालेरका गोटा १३ वरग लगाया हुवा और धजा १३ व्रतका मामलापर व्रत दीप च ढावै । बाकी द्रव्य सर्व थाल्यांमें दोनुं तरफ रखै । दीपक पूजामें १३ दीपक तो एक थालीमें रखै । और वारह व्रतका अतीचार १२४ वर्जण निमत्त १२४ एकसो चौवीस दीपक मामलैके चारुं तरफ सोनता श्रेणीवच रखै इत्यादि यथा शक्ति चित्तकी नदार वृत्तीसें पूजन विधि करै, करावै, करतां की अनुमोदना करै । विशेष चित्तकी नमंग होय तो वाजिबादि नबवके साथ मोटी धजा, कल्पवृक्ष अष्टमंगलीक नगरमें फिराकर लावै । उत्तम नत्तम द्रव्य जगवानके नेट करै ॥ॐ॥ इति वारह व्रत पूजा विधि संपूर्णम् ॥ ॥ॐ॥अथ पाठक बालचंदजीकृत पंच कल्याणक पूजा॥8॥ ॥ तत्र प्रथम च्यवन कल्याणिक पूजा॥8॥ ॥ ( दूहा ) ॥ ज्योतिरूप जगदीशनो, अद्भुत रूप अनूप ॥ प्रवचन प्रजुता प्रगट पण, जय जय ज्योति सरूप ॥ १ ॥ * ॥ चौवीसे जिनवर नमी, पंच कल्याणक रूप ॥ शासन नायक वरण, दर्शन ज्ञान संरूप ॥ २ ॥ ॥ कल्याणक उबव करे, इंद्रादिक जे देव ॥ ते जावे लविजन करे, श्रीजिनवरनी सेव ॥३॥8॥ तो एक थाना चौवीस दीपक मारवृत्तीसें पूजनविधा वाजिबादि नवक
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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