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________________ ६५३ इकवीस प्रकारी पूजाकरि| सफल किय निजजनम विगततंद्रा ॥ प्र० ४ ॥ इणपरें सुनमती शुध श्रावक सदा । विमलजलसें करे न्हवण जिनको । तेह शिवचंद्र कर विमलप द है || हरिय संसरण संसारवनको ॥ अन्य० ५ ॥ काव्यं ॥घनतरांतर ताप विनाशनं । सकल मंगल शाल घनाघनं । जिनगण प्रमुदा जल धारया हितकृते स्नपयामि स्मारया ॥ ६ ॥ न झीं श्री अनंतानंत ज्ञानशक्तिभ्यः सकल सुरवरेंद्र वृंद विहित प्रक्तिभ्यो जन्मजरामरण निवारणकारणेभ्यः कुम तिमत तरुणगण कानन समूलोन्मूलना वारणेभ्यो एहिलौकिक श्रीरुषादि श्रीवर्धमान पर्यंतेभ्य चतुर्विंशतिजिनेंद्रेभ्यो जलंयजामहे स्वाहा ॥ ॥ ॥ इति प्रथम जल पूजा ॥ १ ॥॥ ॥॥ ॥ॐ॥ ॥ * ॥ अथ चंदनपूजा ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ दूहा ॥ तियपूज चंदन सरस । कुंकुम अरु घनसार । घसिके करिय जिनत। तिलक विलेपन सार ॥ १ ॥ अंगणवाऊं एलची रेवाला एचालमें । हरिचंदन वर मृगमदारे वाल्हा। कुंकुम वलि घनसाररे। म्हांरौमन जिनचरणे हो लगगयौ । घसिकरि कनक कचौलीयारे वाहा । जरिकर धरि गंधसाररे ॥ म्हां ० १ ॥ मिलिकरि सकल सुरेसरारे वाल्हा । जिन अरचन चितधाररे ॥ म्हां ॥ करइ तिलक नव अंगमेरे वाल्हा । जिनके विलेपन साररे ॥ म्हां० २ ॥ जिन नवतनु तिलकार्चनेरे वाल्हा | उपजितफल असमानरे ॥ म्हां० ॥ मुगतिरमणि नालस्वलैरे वाल्हा । नविहोय तिलक समानरे ॥ म्हां ॥ ३ ॥ नविय इणपरिकरैरे वाल्हा | चंदन पूजरसालरे ॥ म्हां० ॥ तेशिवचंद्र विमलल है रेवाला । निरुपम गुण मणि मालरे ॥ म्हां० ॥ ४ ॥ काव्यं ॥ विमल नाव जरान्वित यार्चया । सुरभिचंदन जातसपर्यया । जिन वरेंद्रन मया । निशमहं सम पूजन वर्यया ॥ ५ ॥ ी श्रीं० श्रीरु षनादि चतुर्विंशतिजिनेंद्रेभ्योश्चंदनं यजामहेस्वाहा ॥ ॥ इति द्वितीय चंदनपूजा ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ भूषणपूजा ॥ * ॥ ॥ * ॥ तीजीपूजामें आभूषण अथवा रोकनाणौलेख मोरहै ॥ दूहा ॥ तृतीयपूज जिनराजनी । करहु जविक सुखदाय । मन मंदित
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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