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________________ ६५२ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. प्रदीपसें आरती कीजे । मावे आवर्त कहायरे ॥जी॥ जैन आरती पढे पढावै । तोथाय सुररायरे ॥ जी० ॥ ४॥ मंगलकारी विधननिवारी । सुख कारी लय लायरे॥जी॥ पंचमगति पांमें एहनांमै । जेगावै चितलायरे जी० ॥५॥ एहआरती नविजनमोहै । नांमें नव निध थायरे॥जी॥ सुखकारी ए सकल मनोहर । कर्पूरजद्र गुणगायरे ॥जी॥६॥ ॥ इति नंदीश्वरजीकी आरती संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥अथैक विंशतिविध जिनेंद्रपूजा लिख्यते॥ ॥ ॥दोधक ॥ मंगल हरिचंदन रुचिर। नंदन बिपिन उदार । वामानं दन पद पदम । वंदन करि जयकार ॥१॥ प्रवचन मैं प्रनुनी कही ॥ इकवी स परम प्रकार । पूजा हित सुख केम शिव । पद करणी मनुहार॥ २॥ राग ॥ वासु पूज्यजिन अंतरजामी।एचाल।ए इकवीस विध पूजनकरीयै । जिननो जवनय हरियैरे। स्नपन । विलेपन २ भूषण ३ निरुपम । पुष्प ४ वास ५ नर धरियरे॥ ए० १॥ सुरनिधूप ६ फल ७ दीपक ८ तंमुल ९ । वरनैवेद्य । १० मधु करियरै। पत्र ११ पुंगीफल १२ निरमल जलभृत । कलश १३ बिंब पुर धरियेरे ॥ ए० २॥ वसन युगल १४ सितनत्र १५ चमर१६धुनि । मधुरतूर नी १७ करियैरे गीत १८ नटन १९ जिनवर गुणनी स्तुति २०।कोशवृधि२१ शुन धरियर । ए०३॥ इति इकवीस विधि पूजानाम पदम् ॥१॥ (दूहा ) प्रथम पूज ए जाणियान्हवण करै जिन अंगाइण अरचना भव्य नौ। होर कुमति मलनंग ॥१॥कलश सुंगध अवोटजलसुं नरी लेकरि खमौ रहै। रागदेशाख ॥ पूर्वमुखसावनं एदेशी॥ अन्यदा कनकगिरि राजशिखरो परै। जिन निलय तत्र जिनचंद्रवसिया। विविध वरनक्ति नरकरणकू सुरग णा।प्रनुचरण पद्मनतिकरण रसिया।।अ०१॥प्रावि चनसहि जिननक्ति धरि ह रिंगणा । मिलिकरी मुर असुर कोमि कोडी।तीर्थपति ध्यावता विमलगुण गा वता । प्रदरश पावता पाणि जोडी ॥अ० २॥ तीर्थ वरदाम परनास माग धपदमादीरसागर प्रमुख सलिल जरिया।सुरवरा कनक मणि रयण रजतादि मयाकलश करकमल ऊपरि धरिया अ०॥३॥कलश मुख पतितधन चंद्रकर वि मलतर। सलिल नरुधारसे सहुसुरेंद्रा। सुर गिर सकल जिनराजको न्हवण
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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