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________________ ६२२ रनसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ ॥ अथ सप्तम साधुपद पूजा लि० ॥ ॥ जाणे जिनवाणी सरस । स्पादवाद गुणवंत । मुनिकहीये सिव पंथनें। साधै साधुकहंत ॥१॥ समतारस जलमीलता। विशदानंद सुरूप तिण पांम्यो पद सप्तमें । नमोनमों मुनिनूप ॥२॥*॥ ॥ ॥ (राग गुंममिश्रित नीम म० ) मेघवरसेनरी पुप्फवादल करी ए चाल । जक्तिधरि सातमें पद नजो मुनिवरा । सुखकरा विजित इंद्रिय विकारा। गुण सत्तावीस नूषणकरी शोनिता । होनिता विकट क्रम सुनट सारा ॥१॥ जक्ति०॥ चरणसत्तरि परम करणसत्तरि धरा । शिवकरण नाण किरिया प्रधा ना। प्रतिदिनं दोष आहारना वरजिता । सप्तचालीस यतिध्रम निधाना॥२॥ भक्ति० ॥ मदनमद नंजता कुमति जन गंजता । उक्तजन रंजता शांतिधरी या। सुमति धरिया सदा चरण परीयाजना । तारीया ग्यान गंजीर दरीया ॥३॥ नक्ति० ॥ त्रिणमणी समगिणे चतुरविध धरमना । परम उपदेश दा यक नदारा । बहिर भ्यंतर निदा बारविध अतिकग्नि । तपतपै सकलजीन अन्नयकारा ॥ ४॥ नक्ति० ॥ बलि अठावीस मनहरण गुण लबधि निधि । सातमें गुणगण वसीया । सप्त नयवारका प्रबर जिन आगन्या । धारका स्वगुण परिणमन रसीया ॥५॥ नक्ति० ॥ पंचपर माद कल्लोलता कुलमहा । पारसंसार सागर जिहाजा । विविध नववामि युत शीलव्रतके धरा । मधुर निजवाणि रंजित समाजा॥६॥क्ति० ॥ कोमि नवसहस थुणीये महा मुनिवरा । वीरनद्र जिमकरीय साधुसेवा । परमपद जिनहरष सुग्रह्यौ तसुतणा। चरणकज युगनमें सकलदेवा ॥ ७॥ जक्ति० ॥ (काव्यं ) संतकिया सेस परीसहाणं । निस्सेस जीवाण दया गि हाणं । सन्नाण पजाय तरूवणाणं । णमोणमो होन तवोधणाणं ॥८॥ (नक्षी श्री सर्व साधुभ्योनमः )॥७॥ इति सप्तमपदे श्री साधु पूजा॥ ॥ ॥अथ अष्टम ज्ञानपद पूजा लि०॥॥ .॥ ॥ (दूहा)॥ विमलनाण खर किरण किय । लोका लोक प्रकाश । जीतलई निजतेजसें । जिन अनंत रविनास ॥१॥ सहु संशय तम अपहरै। जय जय नाणदिणंद । नाण चरण समरण थकी। विलय होय मुखदंद
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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