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________________ ६२० रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. पालता ॥ चरण करण मग चालतारे ॥ २ ॥ प्रचारिज ० || सूरि सकल गुण सोहतारे वाला । सुर नर जन मनमोहता ॥ मोहता (हांरेवाला) मो० । नवीय परिबोहतारे ॥ ३ ॥ प्राचा० ॥ पंचाचार विराजितारे वाला । सजल जलद जिम गाजता ॥ गाजता (हांरेवाला ) गाजता ॥ सूरि सकल शिर बाजारे ॥ ४ ॥ ०॥ उपदेशामृत वरसतारे वाला । दुरितताप सहु निरसिता || निरसिता (हांरेवाला ) निरसिता ॥ परमातम पद फरसतारे ॥५॥ आचा० ॥ धरम धुरंधरता धरारे वाला। जगबांधव जगहितकरा ॥ हितकरा ( हांवाला ) हितकरा | स्व परसमय विन गणधरारे ॥ ६ ॥ ० ॥ पद श्री जिनहरy ग्रह्यो रे वाला। सूरीशर पढ़ तपवह्यौ । तपवह्यौ ( हांरेवाला ) तपait | पुरुषोत्तम नृप शिव लह्योरे ॥ ७ ॥ ० ॥ ( काव्यं ) कुवादि केली तर सिंधुराणं । सूरीसराणं मुणि बंधुराणं । धीरत संतकिय मंदराणं । मोसया मंगल मंदिराणं ॥ ८ ॥ ( झी श्री प्राचार्येभ्योनमः) ॥४॥ ॥ इति चतुर्थपदे श्री प्राचार्यपूजा ॥ ४ ॥ 1111 ॥*॥ ॥ * ॥ अथ पंचम थिवर पदपूजा जि० ॥ * ॥ ॥ * ( दूहा ) * ॥ डुविध थविर जिनवर कह्या । द्रव्य नाव प रकार। लोकिक लोकोत्तर वली । सुनियै नेद विचार ॥ १ ॥ जनकादिक लौ किक थविर | लोकोत्तर अणगार | पंचमपदमें जानिये | पुती थविर अधि कार ॥ २ ॥ (सारंगराग ) || नितनमीयै थविर मुनीसरा । पंचमहाव्रत धार क वारक । कुमति जगत जन हितकरा ॥ १ ॥ नितनमीयै० ॥ २ ॥ संय मयोगे सीदत बालक । ग्लानादिक सहु मुनिवरा । एहनें उचित सहाय दी यणतें । वारे एहना दुखनरा ॥ २ ॥ नित पर्याय वय श्रुति त्रिविध एथ विरा । वीसरु साठ समोपरा । बयधर समवायादिक पाठक । एहथ विर गुणागरा ॥ ३ ॥ नित० ॥ तीजैप्रंग का दशथविरा । रतनत्रयी ना गुणधरा । तेइह निरमलना वै ग्रहिवा । जविक सरोज दिवाकरा ॥ ४ ॥ नित० ॥ कीर जलधि सम प्रति गंभीरा । सुरगिरी गुरु धीरज धरा । शर शागत तारणता धारा । ग्यान बिमल जल सागरा ॥ ५ ॥ नित० ॥ श्रुत तप धीरज ध्यान करणतें । द्रव्यादिक ग्यातावरा । तेह स्वरूप रमण थवि O
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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