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________________ श्रावककी अहोरात्र करणी. ५१९ ॥ ० ) जिनेशर जग परमेशर । शांति सूरत मनभावत है ( प्रा० ) ॥ १ नुपम रयण जमी नर अंगियां । मुगट कुंमल चित्त चावत है ( ॥ २ ॥ बत्र चामर नामंगल दीपत | नवसर हार सुहावत है ( ० ) ॥ ३ ॥ सरदशशि मुख कमल बिराजत । रविजिम तेज फैलावत है (प्रा० ) ॥ ४ ॥ नर नारी सह अंग आभूषण । लुल लुल शीश नमावत हैं ( प्रा० ) ५ ॥ मणि भुगता फल त श्रीफल । नर भर थाल बधावत है ( ० ) ॥ ६ ॥ बीणा मृदंग ताल कंसाला । मधुर ध्वनी गुण गावत है ॥ ७ ॥ सहुपुर इंद्र धजा प्रति दीपत । बिबिध बाजित्र सुहावत है ॥ ८ ॥ इत्यादिक मेंबर बहुविध । कहतां पार न आवत है ॥ ९ ॥ (०) कार्त्तिक सुद पूनम दिन हव । देख सहू सुख पावत है ( ० ) ॥ १० ॥ धन्यभाग कलिकत्ता पुरमें। मोहन प्रभु गुण गावत है । ( २ ) ॥ ११ ॥ इति कलकत्ता कार्त्तिक महोव वर्णन श्रीधरमनाथ स्वामी बधाई सं० ॥ ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ अथ शासन नायक बधाई ॥ ॥ ॥ ( केशरियानें काजको लोक इस चालमें ॥ हमारे आज प्रानंद बधाई । प्रनु बीरचरण सुखदाई | ( हमारे आज आनंद बधाई ) सिधारथ नंदन जगवंदन | त्रिशला मात कहाई । क्षत्री कुंममें ज न्म लियो है । सुर नर मा धाई ( ह० प्रा० ) ॥ १ ॥ कंचन वरण धिक तन सोति । लंबन व्याघ्र सुहाई । तीन ग्यान संयुत प्रनु कहिये । विकुं सुखदाई ( ० ० ) ॥ २ ॥ केवल पाय सबी सुरसंगे । पा वा पुरमें आई । समवसरण विच देशनादेतां । परखदा बार बनाई ( ह० ० ) ॥ ३ ॥ नूमंगल बिच बहुत जीवकुं । जवजल पार लंबाई | च रम चौमाशि पावा पुरि करके । शिवपुर पंथ सिधाई ( ह० आ० ) ॥ ४ ॥ चौराशी लख जोनीमें फिरतां । काल अनादि गमाई । पुन्य संयोगे प्रजु तुम नेव्या । पातिक दूर पुलाई ( ह० प्रा० ) ॥ ५ ॥ तारण तरण जग तिजन बल । सिवरमणी बरदाई | लक्ष्मी प्रधान सेवे कर जोगी । मोहन क सुखपाई ( ० ) ॥ इति वधाई संपूर्णम् ॥ ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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