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लावणी संग्रह. करता ॥ नीचें लगाता ज्वाला जोगी। बझे बमे मोकें खाता ॥ बार बरस की कमर प्रनुकी । डोटे पनमें बहोत कला ॥ बरोबरीके लीये सोबती । तपशीकू देखन्न चला ॥ ४॥ ज्ञान देखके बोले जोगीसें । ऐसी तपस्या क्युं करता॥ ने जोगी तेरे बमेलकमेमें । बमा नाग इक अध जलता ॥ पारस नाथ जोगीशुं कहेता। तोबी जोगी नही सुनता॥ लकडे दीये फेंक जंग लमें । लोक तमासा देखता॥५॥ क्या कीया बेजोगी तुमने । वमा नाग को जला दीया ॥ दिया सार नवकार नागईं। धरणीधर पदवीपायावी नमेदसें आया साहेब। संवत्सरीका दान दीया ॥ मात पिताकी आज्ञा ले कर। महाराजनें योग लीया ॥६॥राज जोमकै चले जंगलमें । जुगतीसें काउसग्ग कीया। बडे धीर गंभीर प्रजुने । तीन लोकमें नाम किया । नष्ण कालकी बड़ी धूपमें । नीरंजन निरंकार खडा । कमगसुरने कीया कडाका । ननमंडल बादल चा ॥७॥ नहि दिनको कमठासुरने । पीठ : ला दावा जगवाया ॥ मेघमालिकी सेना लेकर । जलकुं जलदी बुलवाया। बडा कीया घनघोर जोरसें । पवन चलाया मतवाला ॥ कडड कडड कर हुआ कमाका । चमक बीजका अजुवाला ॥ ८॥ मूशल धारा मेघ बरस ता। गगन गाजता चौताला। सात खूमकी बमी जमीमें । प्रनु खमा हे मतवाला ॥ नाक बरोबर आया पानी। नाथ निरंजन धीर बमा । पराजय नहि होय जिनूंका। ऐसा प्रनुका ध्यान चढा ॥ ९ ॥ संकटसें सिंहासन मोल्यो। हूवा घंटका अवाजा । अवधि झानसें इंद्रे देख्या । धान धान धरणी राजा । धरणीधर जलदीसें आया । पदमावतीकू संग लीया । पदमावतीने लीये शीशपरः । शेषनागनें उत्र कीया ॥ १० ॥ कोम नपाय कीये कमठनें । कुछ इलाज नही चलता । तरने वाला सा हेब ननकू । उलने वाला क्या करता । जीते श्री जिनराज हारके । कमठ हाथ दो जोम खमा । धरणीधर साहेबके आगे । अरजी करता खमा खमा ॥ ११॥ केवल पाय शिव पुरकू पहोंचे । पार्श्वनाथ शुन मत वाला। लगी ज्योतमें ज्योत दीपकी । तपे तेजका अजुवाला। वीशनगर में पार्श्वनाथका । देवल बनाया तेताला । बमे देवलमें इंदर सोहै । घंट