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________________ ५८० ४५२ रत्नसागर. ल । एक बाणिकरै बलि गुरुमुख सरसरसाल । गबनायक पाशै पहरै माल विशाल ॥ ११ ॥ माल पहरण अवशर आणी मननगरंग । घर सारू वारू खरचै धन बहु नंग । अति नबव कीजै राती जोगो दिल खोल । गीतगान गवावे पावै अति रंग रोल ॥ १२ ॥ ( ढाल ) ॥ए साते नपधा न। विधसों जे वहै । ते सूधी किरिया करै ए । खिण न करै परमाद । जीव जतन करइ । पुंजि २ पगला नरै ए ॥ १३ ॥ न करै क्रोध कषाय । हम २ हस नही । मरम केहनो नवि कहै ए। नाणे घरनोमोह । नतकृष्टी करै । साधु तणी रहणी रहै ए ॥ १४ ॥ पहुरसीम सिशाय । करपोरशिज णी । ऊंचे स्वर बोले नहीं ए। मनमां हे नावै एम। धन २ ए दिन। नरनव मांहि सफल सही ए ॥ १५ ॥ जेसाते नपधान । बिधसेती वहै । पहिरै माल सोहावणीए । तेहनी किरिया शुध । वहु फलदायक । करम निर्जरा अति घणी ए॥१६॥परनव पामै रिछ । देव तणा सुख । बत्रीस वध नाटक पमै ए। लानै लील विलास । अनुक्रम शिव सुख चढती पदवी जे चढे ए॥१७॥ (कलशः)।इम वीरजिणवर नुवण दियर मात त्रिशला नंदणो। नपधानना फल कहै नत्तम नवियजण आणंदणो। जिणचंद जुग परधान सदगुरु सकल चंद मुनीसरो। तसुशीश वाचक समय सुंदर नणे वंचित सुख करो॥१८॥ ॥ॐ॥इति सात नपधांन गजित श्रीमहाबीर स्वामी वृध स्तवन संपूर्ण॥४॥ ॥ * ॥ (इस ) स्तवनमें नपधान तप करनेकी सर्व विधि है । इसी मुजब विबेकी जीव करै। और नपधान तप ग्रहण (तथा) माला पहर ण बिधि इहां न लिखी है (सो) सुध गुरुकै पास । विधि प्रपाक ग्रंथसें जाणकै करै ॥ ॥ इति तत्वं ॥ * ॥ ॥#॥ ॥४॥ ॥ * ॥ अथ राग रागणी स्तवन लि०॥ ॥ ॐ॥ (राग कल्याण)॥ ॥ . ॥ ॥ टुक निजर महरदी करणाहो ॥ टु०॥ मेंहुं अधम पापकी मू रत । मेरा दोस न धरणा हो॥ (टु०) ॥१॥ अष्ट जवनकी प्रीत हमा री। नवमें नव निरवाहना हो ॥ (टु०) ॥२॥ रूपचंद जगतनकी वीन ती। आवागमण निवारणा हो ॥ (टु० )॥३॥ इति पदम् ॥ * ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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