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________________ नपाधान तप स्तवन. जिन्नूं जिणवर नामए । समस्यां सुखदाय । प्रणम्यां पाप मिटै परा । सम कित सुध थाय ॥२२॥ ( च्या० )॥ कलशः॥इम त्रिण चौवीशी वीश बिहरमांन चौजिण शाशता । संथुण्यां सतरैस त्रयांले अधिक प्राणी आ सता । जिन रतन चिंतामणि तणी परि प्रघल वंचित पूरए । प्रहसमै त्रि करण मुघ प्रणमें सदा जिनचंद सूरए ॥ २३ ॥ * ॥ इति श्रीत्रिण चौवी शी, बीस बिहर मान. चौजिण शाश्वता, एवं निन्नू जगवंत नाम स्तवनं ॥ॐ॥ ॥ ॥अथ नपधान तप स्तवन लि०॥ * ॥ ॥ ॥श्रीमहाबीर धरम परगासै । वैठी परषदबारजी । अमृत वचन सुणी अति मीठा । पामें हरष अपारजी ॥ १ ॥ सुणो २ रे श्रावक नपधा न बयां विन । किम सूझै नवकारजी। उत्तराध्ययन बहुश्रुत अध्ययनें । ए ह जएयो अधिकार जी॥२ ( मुणो० ) ॥ महा निशीथ सिघांत मांहे पि ण। नपधांन तप विस्तार जी । अनुक्रम सुघपरंपर दीसइ । सुविहित ग आचार जी ॥२ (सु०)॥ तप नपधान वह्यां विन किरिया। तुद्व अलप फल जाण जी । जे नपधान वद्या नर नारी। तेहनो जनम प्रमाणजी ॥ ४ (सु०)॥तप नपधान कह्यो सिघांते । जो नवि माने जेहजी। अरिहं त देवनी आण विराधै । जमस्यै नव २ तेह जी॥५ (मु० ) ॥ अघड्या घाटसमां नर नारी। बिण नपधान होय जी। किरिया करतां आदेश निरदे श। काम सरै नही कोइ जी॥ ६ (सु०) इक घेवरनें खांमै जरियो। अति घणो मीठो थाय जी। एक श्रावक नपधान वहैतो। धन २ ते कहवायजी। ॥७॥ (मु०)॥ (ढाल)॥ नवकार तणो तप पहिलो बीसम जाण । इरिया वहीनो तप बीजो वीसम आण। इण बिहुँ नपधाने निश्चइ नांण मंमाण । बारै नपवासै गुरु मुख बेबे वांणि ॥ ८ ॥ पेंत्रीसम बीजो णमोत्थुणं नप धांन । त्रिण वायण नगणीस तप नपवास प्रधान । अरिहंत चेई तप चो थो चोकम एह । नपवास अढाई वाणएक गुण गेह ॥ ९ ॥ पांचमो लोग स्स तप अठावीसम नाम। साढापनरह उपवास वायणा त्रिणाम । पुख्खर वरदी तप हो उक्कड सार । साडात्रण नपवासे वांण एक मुविचार ॥ २० ॥ सिघाणं बुघाणं सातमो उपधान माल । नपवास करै इक चौविहार ततका
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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