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________________ ३३८ रत्नसागर. २५ ॥ चारित्र विनय रूप तपसे नमः॥ २६ ॥ गुर्वादिक मनविनय रूप तपसे नमः॥ २७ ॥ वचन विनयरूप तपसे नमः॥ २८ ॥ काय विनयरूप तपसे नमः॥ . २९॥ नपचारक विनयरूप तपसे नमः॥ ३०॥आचार्य वेयावच तपसे नमः॥ ३१॥ नपाध्याय वेयावच्च तपसे नमः॥ .. ३२॥ साधू वेयावच तपसे नमः॥ ३३॥ तपस्वी वेयावच्च तपसे नमः॥ ३४॥ लघु सिख्यादि वेयावच्च तपसे नमः॥ ३५॥ गिलाण साधु वेयावच्च तपसे नमः॥ ३६॥श्रमणो पाशक वेयावच तपसे नमः॥ ३७॥ संव वेयावच्च तपसे नमः॥ ३८॥ कुल वेयावच तपसे नमः॥ ३९॥ गण वेयावच्च तपते नमः॥ ४०॥वायणा तपसे नमः॥ ४१॥ प्रचनातपसे नमः॥ ४२॥ परावर्तना तपसे नमः॥ ४३॥ अनुप्रेदा तपसे नमः॥ ४४॥ धर्म कथा तपसे नमः॥ ४५ ॥ आर्तध्यान निवृत्त तपसे नमः॥ ४६ ॥ रोद्रध्यान निवृत्त तपसे नमः॥ ४७॥धर्म ध्यान चिंतन तपसे नमः॥ ४८॥ शुक्रध्यान चिंतन तपसे नमः॥ ४९॥ वाह्य नपसर्ग तपसे नमः॥ ५०॥ अभ्यंतर नपसर्ग तपसे नमः॥ ॥ ॥ इस रीतसे (५०) नमस्कार करै । ( खडा होके) अन्नत्थू
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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