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________________ ३१० रत्नसागर. सिघांतमें (म्हान०)॥३॥तनुपजारा नाम शिलासें जोयनें (म्हा०शि०) युग लोचनमें नाग अलोककुं स्पर्शनें । लघु अंगुल बत्तीस प्रमाणऽवगाहना (म्हा०प्र०) दृधिधनु शतपंच गुणासें हीनता (म्हा) मिलिया एकमें नंत अबाधा नालही (म्हा. अ.) अष्ट प्राणधरि रम्य सिरीही जो सही (म्हा० सि०) बीजोपद श्रीसिघ धरो मन गेहमें (म्हा० धरो) कुशलनये जग जीव मिलोगा तेहमें (म्हारा मि०)॥५॥१॥इति सिधपद स्तवनम् ॥*॥ ॥॥अथ सिद्धपदस्तुतिः॥2॥ - ॥ * ॥ अष्ट करमकुं धमन करीने गमन कियो सिववाशी जी । अव्या बाध सादि अनादि चिदानंद चिदराशी जी । पर मातम पद पूरण विलाशी अघ घन दाघ विनाशी जी । अनंत चतुष्टमय शिवपद ध्यावो केवल ग्यानी नाशी जी॥॥ ॥ ॥ इति सिधपद स्तुतिः॥२॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥अथ तृतीय पद नमस्कारः॥ * ॥ ॥ॐ॥जिन पदकुल मुखरस अनिल । मितरस गुण धारी । प्रवल सबल घन मोहकी। जिणते चमुहारी ॥१॥ ज्वादिक जिनराज गीत । नयतन विस्तारी । नव कूपै पापें पमत । जगजन निस्तारी ॥ २ ॥ पंचा चारी जीवके । आचारिज पदसार । तिनकुं बंदे हीर धर्म । अठोत्तर सो बार ॥३॥ इति आचार्य पद नमस्कारः॥३॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥अथ श्राचाये पद स्तवन लि०॥॥ ॥ ॥ (नणदल बींदलीलै एचाल )॥ ॥ खंती खमगथी जेणें । हायो क्रोध सुन्नट सम देणेहो। ( गणपति गुणपखी ) । मान महागि रि बयरे । अति सोनन मद्दव बयरें (होग० १) दंगरूप बिश बेली । वर अजब कीसै ठेलीहो (ग)। मुर्बा बेलथी नरियो । लोह सागर मुत्ते तरियोहो(ग०)॥२॥ मदन नाग मद हीनो। जिण दम शम जंत्र की नोहो (ग) मोह महामन तामयो । पुण बैराग मुगरें पाड्यो हो (ग) ॥३॥दोश गयंद बस कीनो। धरि नपशम अंकुस लीनो हो (ग) अं तरंग रिपुनद्या । सुर बर पिण जिण णिषेद्याहो (ग० ४) रस कृति गुणथी.
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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