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________________ नवपदके (९) चै० (९) स्त० (९) थुई ३०९ व्यापार । बेइंद्रीने वाक्य प्रचार (म०) आदि समय रह्यो पणक सुजी व । सुखम लह्यो तिण जोग अतीव ( म०) एषां योग थी समयें एक। हीना संख गुणो कर बेक ( मनमा० ) समया संखें जोग निरोध । कृत्वा जो लह्यो जोगी सोध ( मन० ) बेद समें ना हारता पाय । कुशल कहै ते श्री जिनराय । ( म० ) तेरमे गुणमें गुण समें देव । आपोसा जगकुं नितमेव ( म०)॥५॥ इति अरिहंतपद स्तवनम् ॥१॥8॥ ॥॥अथ अरिहंत पदस्तुतिः॥॥ ॥ ॥ सकल द्रव्य पर्याय प्ररूपक लोकालोक सरूपो जी । केवल ग्यान की ज्योति प्रकाशक अनंतगुणें करि पूरो जी । तीज जव थानक आराधी गोत्र तीर्थकर नूरोजी । बारै गुणांकरी एहवा अरिहंत आराधो गुण नूरोजी ॥ इति अरिहंत पदस्तुतिः॥१॥ॐ॥ ॥ ॥अथ सिद्धपद चैत्यबंदन ॥२॥ ॥ ॥ॐ॥श्री शैलेसी पूर्वप्रांत । तनु हिंनत नागी । पुव पन्यपसंगसें करधगत जागी॥ १ ॥ समय एकमें लोकप्रांत । गये निगुण निरागी । चेतन नूपें आत्मरूप । सुदिसा लही सागी ॥ २ ॥ केवल सण नाण थी ए। रूपातीत स्वभाव । सिच नये तसुहीर धर्म । बंदे धरि सुन्न नाव ॥३॥ इति सिधपद चैत्यवंदन ॥२॥ ॥ ॥ ॥ अथ सिद्धपद स्तवन लि०॥ ॥ . - ॥ ॥ थारे महिला ऊपर मेह रोखै बीजली॥ (ए चाल)॥ॐ॥ अष्ट बरस नग मास हीना कोडी पूर्वमें ( म्हारालाल ही० ) । नतकृष्टो करै बास सयोगी धाममें ( म्हा० स० ) ॥ अजोगी के अंत तजे नव नव्य ता (म्हारा त०)। शैलेसीलहै कर्म दलै गुणश्रेणिता ( म्हा० द०)॥१॥ स्वादर पंच काल रहै ते योगमें । (म्हा०र०) तेरस प्रकृतिनो अन्त करीनें अन्तमें (म्हाक०) गमन करै नगरऊसें अक्रिय होयनें (म्हा० अ०) पुत्व पयोग असंग स्वनाव प्रबंधने (म्हा स्व० २) इषु गुण नवपरमाण जोजन लके कही (म्हा जो०) वर्तुल बिसदा नाश निरालंबन सही (म्हा०नि०) मध्ये जोजन अष्ट घनाकृति अन्तमें ( म्हा०प० ) मही पदाथी हीन जणी
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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