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________________ २९० रत्नसागर. दरो। सीख सुगुरुनीरे सार । बि० ॥ इण नव परनव आणंद अति घणा । कहै ध्रमसी सुखकार ॥ बि० ९ सा० ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ उपदेस सिशाय लि॥॥ ॥ ॥ दमका नांहि नरोसा साहै। करले चलनेका सामान ॥ १ ॥ तन पिंजरसें निकश जाएगा। जिनमें पंजी प्राण ॥द०१॥ लख चौरासी जोजन लटक्यो । उपनों गरना धान । सवानवमास बश्यो अंधकूपमें। मनु ष्यरूप सनमान ॥ द०२॥ नत्तम कुल में जनम लियो है। सुखमें खाण अ रुपाण। नीरपमयां तेरै कोइयन साथी। साथी दान अरु ध्यान ॥ द० ॥ ॥३॥आशा त्रिशनां बिकथा निद्रा । कुमता रूप निधान । दिन २ बधै पापकी संगत । ब्यापैं क्रोध अरुमान ॥ द०॥४॥ चलते फिरते सोवत जागत। करत खाण अरुपाण । उिन २ आयु घटतहैं तेरो। होत देहकी हाण ॥ द०॥५॥ माल मुलक अरु सुखसंपत में । होय रह्या गलता न । देखत२ विनस जायगा । मतकर मान गुमान ॥द०६ ॥ जूठा सब यह जगत पसारा । नारी विषकी खान । माया ममता आदिके बैरी । इनसे कहा पहचान ॥ द० ७ ॥ पांचू चोर मुंसें घर तेरो । इन की खोटी बाणि । अठबैरी तेरे संग फिर तुहै। मोह बमा सुलतान ॥ द० ॥ ॥८॥ कोइ रहणे पावे नही जगमें । यह तु निहाचै जानि । अजहुं गं मि समकि कुटलाई । मूरख तर अज्ञान ॥ द०॥९॥ नाई बंध अरु स जन संबंधी। राखै तेरा मान । अंतसमें कोई कामन आवै। किसपै मान गुमान ॥ द० ॥१०॥ जप तप शील पालो मुन्न संगत । देह सुपात्रे दान । सेंहित साध चरण चितल्यावो । प्रनु लज तज अनिमान ॥ द०॥ ॥११॥ इति उपदेश सिज्जाय संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ - ॥ ॥ जंजं बिहिणा लिहिअं । तंतं परिणमइ सयल लोयस्स । इह जा णे विणधीरा । बिहुरेवि नकायरा हुंती॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥अथ बाहूबलजीनी सिशाय लि०॥॥ . ॥ॐ॥ईमर प्रांबा आंबलीरे । एचाल ॥ * ॥ बाहूबल चारित ली · योरे। साचो धरिबैराग। जरतेसर इम बीनवैरे। बार २ पाय लाग । हरष
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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