SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नसागर. कर जी । धर मन ग्यान विवेक । सकल करम दूर करै जी । पामें सुक्ख अनेक ॥ १४ ॥ (म० कलश ) इम वीरजिणवर तणा मुख थी अरथ गण धर सांगली । कहै सूत्र वाणी मन सुहाणी सुणो नवियण मन रली। जब शाय वर सिरि लडकीरति मुख थकी ए संग्रही । मुह पती पमिलेहण तणी विधि ललि वचन गणि कही ॥१५॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति श्रीमुह पत्ती पमिलेहण स्तवनं ॥ १४॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ अथ सिद्धगिरि स्तवन लि०॥ ॥ ॥श्री विमलाचल शिर तिलो। आदीसर अरिहंत । जुगला धर मनिवारणो। नयनंजण जगवंत ॥१॥ श्री० ॥ मुऊ मन ऊलट अति घणो (रे) सोदिन सफल गिणेस । स्वामी श्रीरिसहे सरू । जब नयणे नि रखेस ॥२॥ श्री० ॥ जंगम तीरथ विहरता। साधु तणे परिवार । आदि जिणंद समोसरया । पूरब निनांणुंवार ॥३॥श्री०॥ अचरा विजया नंद ने। जग बंधव जगतात । इण गिरि चनमासे रह्या । थिवर कहै ए वात ॥ ४॥श्री०॥ पामें शिव सुख सासता। गणधर श्री पुंगरीक । पुंगरगिरि तिण कारणे । नगति करो निर जीक ॥ ५॥ श्री० ॥ नमिनें विनमिस होदरू । विद्याधर बलवंत । सेजेज सिखर समोसरया । जे गरुवा गुणवं त॥६॥ श्री० ॥ थावच्चा मुनिवर सुक । सहस २ परिवार । पंथग वय णे जागीयो। सो सेलग अणगार ॥७॥श्री० ॥ पांव पांच महाबली। सुणी जादव निरवाण । ते सीधा सिधा चलै । सुर नर करै वखांण ॥ ८ ॥ श्री० ॥ इम सीधा इणडूंगरे । मुनिवर कोमा कोमि । पाज चढंता सांन । ते प्रणमुं कर जोडि ॥९॥श्री ॥ जे वाघणि प्रति बूझवी । ते दर वाजे जोय । गोमुख यह कवड मिली । सानिध कारी होय ॥ १० ॥ श्री० ॥जे विधसं यात्रा करै । सुर नर सेवकतास । राज समुद्र गुण गा बतां । अविचल लीलविलास ॥११॥श्री० ॥ इति से→जय स्तवनं ॥ ॥ ॥ ॥ अथ श्री रिषन जिनेसर स्तवन लि०॥ 18 | शान जिनेसर दिनकर साहिब । वीनतमी अवधारोरे (ज गनातारू । मुझ तारोजी कृपा निधि स्वामी) ॥ जग जसवाद प्रगट ता
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy