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________________ मुहपत्ती पमिलेहण (वा) सिगिरी स्तवन- २५९ रयण ॥३१॥ इमनगते नोलिमतणीए । श्रीअजिय शांति जिण थुइ जणीए । सरण बिहुँ जिणपायए । सिरि मेरुनंदन वझायए ॥३२॥ इति श्री अजित शांतिजिन वृघस्तवन संपूर्णम् ॥ * ॥ ॥॥अथ मुहपत्ती पमिलेहण स्तवन ॥ ॥ . ॥ ॥ (ढाल कपूर हुवे अति ऊजलोरे एचाल) ॥ ॥ वरधमान जिनवर तणाजी । चरण नमुं चितलाय । ग्यान क्रिया जिण नपदिस जी। शिव मुखतणो नपाय ॥१॥ (विक जन धर श्रीजिन नपदेस । बूटे कर्म कलेस न०) ॥ पमिलेहण मुहपति तणीजी । नाषी पचवीस । तिहां एनाव विचारीयै जी । इम ना जगदीस ॥२॥ (न०) प्रथम बेपास विलोकियै जी। सूत्र अरथनी दृष्टि । एपमिलेहण दृष्टिनी जी । करे ध मनी पुष्टि ॥ ३ ॥ (ज०) समकित मिथ्या मिश्रनीजी । मोहनी तीन नो त्याग । कामराग स्नेहराग ने जी । तज वलि तिम दृष्टिराग ॥ ४॥ (०) सीष वधू तक गुरु थकी जी । वाम हाथ करनान । नव अखो मा आदरो जी। नव पखोमा गमान ॥५॥ (०) देव तत्व गुरु तत्व मुंजी। धर्म तत्व गृह सार । कुगुरु कुदेव कुधर्मनो जी । तीन तणो परिहार ॥६॥ (ज०) ग्यान दरसण चारित्रना जी । संग्रह तीन आचार । तजो विराधन तीन एजी। एह अरथ अवधार ॥ ७॥ (न०) मन वच कायानी सदाजी । गुपति गृही जे मुच। परिहरीयै वलि जाणनें जी। तीने दंम विसुच॥ ८॥ (न०) पमिलेहण पचवीसए जी। मुह पत्ती नी सार । हिव पमिलेहण अंगनी जी । ते पिण चतुर विचार ॥९॥ (०) हास्य अरति रति दोयनें जी। सुछ करो वाम वांह । तजि नय शोक गंउना जी। दक्षिण पिण कर साह ॥१०॥ (न०) धुरली ले श्या तीन एजी। ते शिर थी करि दूर। रिधि रस शाता गारवो जी। करि मुख थी चकचूर ॥११॥ (०) काढ सख्य तीन नर थकी जी । माया नियाण मिथ्यात । च्यार कषाय वे वगलथी जी। क्रोधादिक करिघात॥१२॥ (ज०) तज खटकाय विराधना जी। चरण बिएहे सुध होय । ए पमिले हण अंगनी जी। पचवीसे तुं जोय ॥१३ ॥ (ज० ) इम पडिलेहण जे
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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