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________________ भगति करेवि भावे थइ निर्मल देह । वंदिअ मुणि मणिचंड) तास पासे बे बेठा, चउनाणी चारण मुणिंदे ऊपयोगें दीया ॥ मयणरेहने जाण कर,धर्म कहे रिषिराय। विद्याधर मन वालियो, खामे लागी पाय ॥३१॥ आज पछे तुं बहिन माहरी खेचर बोलइ, ताहरूं कहि सुं करुं काज सुविनीतह तोलइ। कहे सती तें सर्व कियो नंदीसर दाख्यो, पूछी पुत्रह वात साचि ते निरतो भाख्यो । जंबूद्दीव मुणि सुंदरीय पूवविदेह मझार, विजयपुख्खल मणितोरणा नयरि तथ्य संभार ॥३२॥ (महावीदेह क्षेत्रे पुष्कलावती विजये अमीततेज चक्रवर्तिना पुत्रर. पुष्पशिखर रत्नसीखर हुआ,तिहां चारित्रपाली बारमेदेवलोके, २२सागरोपमने आउखे देवता हुआ तिहाथकी धातकी खंडद्वीपे हरिषेण वासुदेवने घरे पुत्रहुआ सागरदेव १ सागरदत्तर तिहां चारित्रपाली महाशुक्र देवलोके ११. सागरोपम आउ पाली मिथिला नगरी पद्मरथ राजा हुओ, बीजो सुदर्शन पुरे जुग पाहुने घरे मिहुओ) अमियुजसाभिह चक्कवट्टी पुष्पवती नारी, रयणसीहने पुष्फसीह तमु सुत संभारी। चोरासी लखपुव्वराजपदवि ते पालि, एक अवसरे संजमधारवि आश्रवसवि टालि ॥ पूवलक्षसोलहलगे, चारित्र-पाले भाइ । अच्चुयकप्पें चविय करि, इंद्र सामानिक थाइ ॥३३॥ सागरदोयनें वीस अमर मुख तेह भोगविया, धाइय खंडें भरत अर्धे ते तिहथीचविया । चक्रीसर हरषेण घरे ते सुत अवतरिया, बहु दिन पाली राज अंते संजमसिरि वरिया। वीजघाति त्रीजे दिवसें,
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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