SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इण अवसरेरे चंडप्रद्योत धरणि धणी, उजेणीरे नयर निवासी अतिगुणी । कहे आवीरे दूत) दुमुख नृपयदु थयो, एम बोलेरे (संभलि अणखें गहबह्योः-गहबह्यो मुकुट विचार संभलि दूतमुखे एहर्बु भणे, ए मुकुट रत्नज अति अपूरव जोइये घर अम्ह तणे । मूकज्यो शीघ्र नहीं ते अथवा जुद्ध सजाइ करो, एम मुणी दोमुह कहे वलतो कह्यो अम्हारो जइ करो ॥७४॥ ( गाथा:-) देहि अनलगिरि हत्थी',अग्गी भीरुतहा रहवरोय। जाया य (शिवादेवी', लेहारिअ लोह जघो॥१॥ ए च्याने द्यो साढ़े मुकुटह तणे, एम संभलरिरे चंडद्योत रोसे घणें । जद उपरिरे चतुरंग बल सज्जी करी, धरि आगलेरे लक्षद्वनि ममत्त करी:दोय सहस रथ हय, अयुत पंचे कोडि सग पायक तणी, नहु पार लहिये अवर रिद्धिहि चाल्यो उज्जेणी धणी । पंचाल देसह संधि पुहतो दुमुख बल सजि आवियो, संग्राम करतां दुमुख जीतो सबल वलि चित्त भावियो ॥७५|| कठपंजरेरे चंप्रद्योत नृप चालियो, दधिवाहणरे नयर आवि जस ध्वज लियो। एक दिवसेरे रायसुता.भा जिसी, प्रद्योतेरे दीठी तेहज मनवसीःमनवसी मंडपे सभा भूपति सपरिवार बेठो, मुख छाय विलखि जुहार करतो राय दोमुहि दिठो । पूछियो सयल समाधि वलतो न घे उत्तर ते सही, हसि पड्यो राजा वली पूछे वात जिम थी तिम कही ॥७६॥ तुझ पुत्रीरे मुझसुं पाणि ग्रहण करे, तो निश्चेरै जीवित माहरो ऊगरे । एम निरतोरे जाणि प्रद्योत
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy