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________________ प्रयत्न कामणा ॥५८॥ सरदकाले एकण प्रस्ताव, सेत वच्छ जायो एक गाव । देखि कहे नृप एहनी माइ, रखे कोइ दूहवे नित जाइ ॥१९॥ दूध न दीये जिवारें छेह, अपर धेनु पये पोसो एह । तिण करि गोप ते थ्यो मयमत्त, हूओ खीरपानि अतिरत्त ॥६०॥ दीठो राय केतले काल, आवी जरा तासु तिण काल । महाकाय हाड पंजरे, पाइरुआं ते पराभव करे॥६१॥ चिहं दिसि आवी चंटे काग, झरे नयण जिम पाणी माग। उठी बेसी नसके 'किमे, जाइ खीजावे बालक रमे ॥६२॥ एक अवसरे तेह आवे भूप,देखी धुरंधरतणो सरूप । अहो किसीपरे ए सोभतो, जइये जोवन वये दीपत्रो ॥६३।। हिव वायस पाडा परिभवे, कहो इसीपरे ए किम हवे । पण छे ए संसार असार, जे विणसतां न लागे वार ॥६४॥ इंद्र धनुष जेहवी वीजुली, अति चलअरे तसु अटकली । तिम ए धन बहु जन सम भाइ, एक कून्हे नहं निश्चल थाइ ॥६५॥ (सांश समे तरु आवी मिले। थये प्रभाते जूआ टले । जिम पखौ तिम ए परिवार, वीछडतार नवि लावे वार ॥६६॥ जिण तनि जोअण सय संचरे, तिण जर आव्ये चरण न भरे । खिण संगुर ए.जाण सरीस एह उपरि किम राचे धीर ॥६७।। एवमादि सघला संबंध,चीतवतो करकंदु" पतिबुद्ध । पंचमष्टि आपें करे लोच, विषयकषाय कियो संकोचे ॥६८॥ सासण देव ते आपेलिंग, संजय पाले रुषि मनरंग । ते मुशिवरनो मनधरि नाम, हरषे ब्रह्मो करे प्रणाम ॥६९॥
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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