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________________ (ढालः-छाहुली, जेम कोइ नर पोसए-ए देशीमां) संपद आपद कर्म बसें, काल प्रमाणे उल्लसें, मनरसें भोगविये तेहज सहीए । खिणमाहि सुख संयोग, दीसे खिण माहें सवियोग, ल्यो जोग समझावी एहवू कहीए ॥३०॥ चिंते हिव संजम लाग, हियडे आणी वैराग, भवराग टाले संजम आदरीए । गरभ न भाष्यो भयाकरी, मनमाहें माया करी, ||अवसरे प्रसव सुत प्रच्छन करीए ॥३२।। कंबल रयण ढंकिय, करि मुद्रा नामंकिय, संक्रिय मूने मसाणे बालक धरेए । देखी रक्षक चंडाल, निजनारीने ये बाल, सुखसाल अवकनिष नामें करेए. ॥३२॥ महासती तसु जाइ घरें, ते बालक सुं सुख करे, मन ठरे देखी सुत रमतो घणुए। पूछे महासति गर्भवात, ते मूओ एम कहे वात, ते मृत लोक कहे मातंगतणोए ॥३३॥ बालक बहु मिले एम भणे, हूं राजा छु तुम्हतणे, बहु बणे जो धो कर मुझ सवि मिलीए । तो तमु कानें छे कंड, तेह जनो ल्ये करकंड, करकंडु नाम कह्यो बहुजण मिलीए ॥ ३६॥ (ढाल:-) ते महासतिस्थु वरते रागें, महासति जे कोइ भिक्षा मागें । सरस लहि ते तिहनें आपे, मातंग नायक जे तमु थापे ॥३५॥ तेय कुमरमु मसाण सुरख्खे, तिहां दोय मुणिवर आव्या पिरुखे । वंसरन उभा जोवंत, मांहो माहें एम कहंत ॥३६॥ एक दंड एह माहें एह, लक्षणे पूरो नहु संदेह । अंगुलचार
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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