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________________ १०८ वंशावळी, देश नगरना नाथ ॥३३॥ (ढाल ७ मो-कोइलो पर्वत धूंधलोरेलो ए देशी.) आगळ चाले वेत्रिणी रेलो, पूंठे कुमरी अनूपरे बाईजी। चूंघट ओट आरी समेरे लो, जोति मन करी भूपरे ॥ बा०॥ ॥३४॥ वर वालम मन मानियोरे लो, जे आवे तुज दायरे ॥ बा०॥ महि मंडलना महिपतिरे लो, वात कहुं समझायरे ॥ बा० ॥ वर० ॥ ३५ ॥ ए. कुरु देशतणो धणीरे लो, गजपुर कौतुकवंतरे ॥ बा० ॥ वैरी वंश निकंदनोरे लो, रूप कला गुणवंतरे ॥ बा० ॥ वर० ॥ ३६॥ कोशल देश कृपानिलोरे लो, मोटो महिपति जाणरे ॥ बा० ॥ हय गय रथ पायक घणारे लो, बोले अमृत वाणरे । बा० ॥ २० ॥३७॥ मेदपाट माने सहुरे लो, आवे भेट अमोलरे । बा० ॥ रू. रतिपत्रि सारिखोरे लो, अवर नहीं इण तोलरे ॥ बा. ॥ ३० ॥ ३८ ॥ कंबोज देस कला घणीरेलो, अश्वरतनरी खांणरे बाईजी। ए राजा तिण देशनोरेलो, तेजें दीपे भागरे बाईजी ॥ वर०॥३९॥ वच्छ देशनो वाल्होरे लो, जाणे सकल जहानरे।। बा०॥ साल सुगंधी निपजेरे लो, देवां दुर्लभ मानरे ॥ बा० ॥ ३० ॥४०॥ काशमीरका | कहुंरे लो, जीभ एक गुण कोडरे । बा०॥ केसर रयण कंबळ हवेरे लो, ते राजारी कुण जोडरे ॥ वा० ॥ ३० ॥४१॥ काशी देश वाराणसोरे लो, पुरनो पृथिवीपाळरे ॥बा०॥ तिहां गंगा स्नाने करीरे लो, पातिक जाय पयालरे । बा०॥व०॥
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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