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________________ पसारी फल हटी, माली ऊभाले फूल ||चंपा०॥३०॥सोती हीरा परखता, बहु बुद्धिनिधान । वरण अढार वसे तिहा, सहुको सावधान ॥ चं० ॥३१॥ परम करम के साचवे,मन वांछित भोग। दुख दोहग दीसे नही, नगरीना लोग॥चंपा०॥३२॥ नगरनिकट चिहुदिशि भला, वापी कूप तडाग । वनखंड वृक्ष घणा तिहां, वाडी ने बाग ।। चंपा०॥ ३३ ॥ वासुपूज्यजिन बारमा, अंगज, नरराज । राजा राज करे तिहां, मघवा महाराज ॥ चंपा०॥३४॥ तेज प्रतापें आकरो, सहु माने आण। सीमाडा भूपाल जे, सेवे राणोराण ॥ चंपा०॥३५॥ देवलने ध्वजदंड छे, स्त्री.कबरी बंध।) मार सारपासे कहे, छिद्र मोती संध ॥ चंपा० ॥३६।। व्यायी समजणी परे, हरिचंद्र जिमबार । विक्रमनी परि साहस्री, कर्ण जिम दातार ॥ चंपा०॥३७॥ इणिपरि राज करे भलो, पुहवीपरसिद्ध । करमसिंह करमे करी, मन वांछित रिद्ध।। चंपा०॥३८॥ ( दूहाः- ) श्रीमघवा महाराजने, लखमी राणी जाणि । पतिभक्ति रुप वल्लभा, गुणगण केरी खाणि ॥३९।। गजगति चाले सुंदरी, सिंह समी कटिलंक । चंद्रवदनि मृगलोचनी, अंग नहीं को वंक ॥४०॥ शील सुदृढ सीता समी, रूपे रंभ सरीष । कोकिलकंठ मनोहरु,वाणी अमृत ईष ॥४१॥ महिला गुण चोसठ कला; कुशल घणुं परवीण । अवसर सघला साचवे, दान पुन्य दाक्षीण ॥४२॥ पटराणी पदमिनी सहित,सुख विलसे महाराय। देव दुगंदुकनी परे, लीला मे दिन जाय ॥४३॥ रतिवंती
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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