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________________ अढार पापस्थानवर्जननी सझायो. ११-परमेश्वरप्राघूर्णक स्तवन, १२-श्रीनेमनाथजी विवाहलो, १३-श्रीपार्श्वनाथजी विवाहलो, १४-साधुवंदना, १५-श्रीनेमिनाथ प्रबंध, १६मृगापुत्रचरित्र, १७-श्रीनेमिधवल, इत्यादिक ग्रन्थो तथा स्तवनो,स्तुतियो, नमस्कारो, पदो तथा सज्झायो विगेरे घj कर्यु छे. तेमनी जन्मभूमि मालवा देशमां आंजणोट नगरमां सोलंकी क्षत्रीयवीर पद्मदेवराय पीता तथा सीतादेवी माताने त्यां जन्म थयो हतो. अने जेमणे किशोरवयमांज पूर्वसंचित पुन्यप्रकृति संयोग वश पोताना भाइ साथे माता पितानी रजा 'मेलव्या. शिवाय द्वारकाजीनी यात्रा करवा माटे प्रयाण कयु हतुं "शुभात् शुभं जायते" एवं थयु के मार्गे चालतां गिरनार तीर्थना प्रदेशमा पूर्व पुन्योदयना प्रभावे परमपूज्य जैनाचार्य श्रीपार्थचंद्र सूरीश्वरजी महाराजनी भेट थइ मूरिजीने वंदना करी पोते तेनी अगाडी बेठा, एटले मूरिवर्ये हलकी योग्य जीव जाणीने शुद्ध धर्मोपदेशनो लाभ आप्यो एथी ते वचनामृत पान करतां मनमां वैराग्यभावने जन्म मल्यो, एटलुज नहीं ते वैराग्ये सत्य वैराग्यनी दीक्षा लेवानी तेमने फरज पाडी के तेमणे पण द्वारका जवातुं द्वार बंध करी जन्मोद्धार करवानुं द्वार खोलवा मन दीg. धार्यु हतुं शुं अने थयुं शुं. “ वाह ! भवितव्यता ? तारी प्रबलता ?' एटले के धार्यो हतो द्वारका दर्शननो लाभ अने शुद्ध चारित्रनो लाभ थयो. गुरुश्रीए नाम राख्यु ब्रह्ममुनि त्यारपछी मुनि
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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