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________________ ॥९१।। चारे मुणिवर गुणसंडार, पाले समति सुपति आचार। विधिसुं करता साधु विहार, खितिप्रतिष्ट पुरे आव्या चार ॥९२॥ तिहा एक देवल छे चोबार, करकंड पेसें पुखद्वार । दक्षिण बारें दुमुह, मुणिंद, नमि पश्चिमदिसि सुभगुणचंद ॥९३॥ उत्तरदिसि नग्गा नरेस, इर्यासमिते करे प्रवेस । मुनिने देतो सुर बहुमान, करे चिहुं दिसि रूप विज्ञान ॥९४॥ खरजवसे करकंड तृण बहे, दुमुखराजरिषि तमु प्रते कहे। राजरिद्धि पुर अंतेउरी, जइ ते तइ सघली परिहरी ॥९५॥ तुं तृणनो स्युं संचय करे. ए चोयण हियडे संभरे। उत्तर कोई न करे कंडु भणे,तो नमि, बोले उलट घणे ॥१६॥ सेवक वर्ग सहु ते तज्यो, संजममारग सूधो भज्यो । तो ते सघलो छांड्यो काज, मुनिने काजे किसुं तुझ आज ॥९॥ एम सूणि भणे गंधारह भूप, जो तुम्ह वंछो राज सरूप । आतमहित कानें संचरो, तो कांइ परनी निंदा करो ॥९८॥ हिव कहें करकंडु मनरली, रिषिजी तुम्हे सुं बोलो वली। मुगति मान मुनि जे आदरे, ब्रह्मचर्यनी बह खप करे ॥१९॥ तेहनो देखि असुभ आचार,मांहोमाहें करे विचार। तासु दोष तुं कहे किण चीत, चोयण पडिचोयण मुनि रीत ।। ३०० ॥ कूरकंडे शिख्या इम कही, सहू किणे साची सद्दही। सपश्रेणिय मंड्यो सुभध्यान, चारे पामे केवलझान ॥ १ ॥ पाले केवलनो पर्याय,भोगवि चारें सरिख आय। पुहता मगति ना समकाल, कालिम कर्मतणी सविटाल ॥२॥ ए मुणिवर (चारे गुणवंत,
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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