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________________ प्रस्तावना. श्रीजैनरास संग्रह; प्रथम भागमां आठ रास आवेला छे. ते संबंधी अवश्य जाणवा जोग्य लेसमात्र अत्रे जणाववा इच्छा छे विशेष तो ते ते ग्रन्थो वांचवाथी वाचक पोते स्व बुद्धि अनुसारे जाणसे. १-श्रीअंजनासुंदरी चरित्र-रास. पृष्ट १ थी ४२ शुधीमां आवेल छे. तेना कर्ता-श्रीमन्नागपुरीयवृहत्तपागच्छीय महामहोपाध्याय श्रीरत्नचारित्रगणिजीना शिष्यरत्न साक्षर मुनिराज श्रीविमलचारित्रजी छे. आ चोपाई-रासनी रचना तेमणे सात जिनालयथी शोभतु प्रगोर नगर 'नगीना सट्टेर' मां विक्रम संवत् १६६३ ना मागसर मासना बीज दिन गुरुवारे करी छे. तेनी सर्व गाथा ४०४ छे. पूर्व भवनों श्री (जिन प्रतिमाजीनी आशातना करवाथी केवा प्रकारना कर्म -बंधाय छे अने तेथी केवी रीतना दुःखो जीवात्माने भोगववा पडे, छे ! तेनो चितार हाबेहुब कविवरे आलेखेलो छे. वली पवित्र अने दुर्गति नाशकरनार शीलवत् पालन करवाथी सर्व दुःखोनो नाश तथा सर्व सुखोनी प्राप्ति थाय छे, तेनुं वर्णन ग्रन्थकारे अदभुत करेल छे. कविता घणी सुंदर अने सरल छे, तेनी साथे उत्तम भाववाही पण छे. कविवरे गुजराती भाषामां काव्यबद्ध रास रूपे रचना करी पोतानुं पांडित्य
SR No.032080
Book TitleJain Ras Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandra Maharaj
PublisherGokaldas Mangaldas Shah
Publication Year1930
Total Pages252
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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