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________________ ३२ संस्कृत साहित्य का इतिहास संस्कृत भाषा में आर्य शब्द का अर्थ है, उच्च प्राचार वाला व्यक्ति । आर्य शब्द किसी जाति या देश का वाचक नहीं है । पाश्चात्त्य विद्वानों ने जिसको आर्य कहा है, वह यदि सदाचारहीन होगा तो वह आर्य नहीं कहा जा सकता है । ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्यों के एक समूह के लिए आर्य शब्द का प्रयोग पाश्चात्य विद्वानों को हो सृष्टि है। उन्होंने आर्य शब्द का जो प्रयोग किया है, वह अशुद्ध अर्थ में प्रयोग किया है । आर्य शब्द उस अर्थ का बोध नहीं करा सकता है। आर्यों के बाहर से भारतवर्ष में आने का समर्थन किसो पुष्ट प्रमाण से नहीं किया जा सकता है । अतः उनके भारत में प्रागमन के समय का भो प्रश्न नहीं उठता है । तथापि वेदों के रचनाकाल के विषय में ध्यानपूर्वक विचार करना आवश्यक है । वेदों के अध्ययन से जो ज्ञान प्राप्त होता है, उससे यह निश्चय करना कठिन है कि वेद को रचना कब हुई। अन्य साधनों से कुछ सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, परन्तु वे निर्णयात्मक नहीं हैं। बुद्ध के उपदेश वैदिक ग्रन्थों को सत्ता को पूर्णरूप से स्वीकार करते हैं । महाभारत की रचना ३१०० ई० पू० में हुई है और वह चारों वेदों को ही नहीं, अपितु वेदांगों की सत्ता को भी स्वोकार करता है। महाभारत के रचयिता का व्यास नाम इसीलिए पड़ा कि उन्होंने वेद को क्रमबद्ध किया । महाभारत रामायण को वाल्मीकि की रचना बताता है । व्यास ने वाल्मोकि को एक प्राचीन ऋषि कहा है और रामायण का लेखक कहा है। इससे स्पष्ट है कि रामायण महाभारत से बहुत समय पूर्व बन चुका था। रामायण वेदों को कतिपय शाखाओं को बहुत प्रचलित बताता है। इससे सिद्ध होता है कि वेद रामायण से बहुत पूर्व बन चुके थे। अतः वेदों के विषय में कोई निश्चित समय का उल्लेख नहीं किया जा सकता है । सम्प्रति इतने से ही सन्तुष्ट रहना उचित प्रतीत होता है कि वेद भारतवर्ष के सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं । - - - -
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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