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________________ पाश्चात्य विद्वानों के विचारों की समीक्षा ३१ प्रदेश में साथ रहते थे या वे विभिन्न प्रदेशों में रहते थे और उनका परस्पर सांस्कृतिक सम्बन्ध विद्यमान था, जिसके आधार पर इस प्रकार के समान अर्थ वाले वाक्य प्राप्त होते हैं । इस बात का कोई प्रमाण नहीं है, जो यह सिद्ध करे कि जेन्दवेस्ता और वेद को मानने वाले एक ही जाति के व्यक्ति थे और वे फारस तथा उसके समीपवर्ती प्रदेशों में रहते थे । पाश्चात्य विद्वानों का यह मत केवल काल्पनिक ही है । यदि इस युक्ति के आधार पर यह सिद्ध किया जाता है कि आर्य लोग बाहर से भारतवर्ष में आए तो इसके विपरीत इसीयुक्ति द्वारा यह सिद्ध करना संभव है कि आर्य लोग भारतवर्ष से बाहर गए और फारस आदि में बस गए। आर्यों के भारतवर्ष में आने के समर्थन में जो युक्तियाँ दी गई हैं, वे इस बात का समर्थन करने के लिए पर्याप्त हैं कि आर्य लोग भारतवर्ष से ही बाहर गए । आर्यों के भारतवर्ष में प्रागमन के समर्थन में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है । अतः यह अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है कि आर्य लोग भारतवर्ष के ही निवासी हैं । उनका सम्बन्ध फारस के लोगों मे भी था । इस सम्बन्ध के कारण दोनों स्थानों के निवासियों में बहुत से एक प्रकार के वाक्य और एक प्रकार के व्यवहार पाए जाते हैं । प्रत्येक राष्ट्र की उन्नति में इस प्रकार के सम्बन्ध दृष्टिगोचर होते हैं । यूरोप के देशों के संपर्क का प्रभाव भारतवासियों के वेश भूषा, भाषा व्यवहार तथा रीति आदि में दिखाई देता है । यदि इस विचार को निराधार माना जाय तो मिस्र की सभ्यता के विषय में कोई स्पष्ट उत्तर नहीं हो सकता है, क्योंकि उनकी फारसी सभ्यता आर्य और तामिल सभ्यता से बहुत मिलती हुई है । अतः यह मानना अधिक उचित है कि आर्यों का मूलदेश भारतवर्ष ही है । वेदों के रचना - स्थान के विषय में कुछ भी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है । परन्तु वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों के भौगोलिक वर्णन से ज्ञात होता है कि जो वैदिक परम्परा के अनुयायी थे, वे भारतवर्ष के पश्चिमी भाग के मूल निवासी थे, जिनके पश्चिम में सिन्ध और उत्तर में कश्मीर का प्रदेश था । यहाँ पर यह कथन असंगत नहीं होगा कि पाश्चात्य विद्वानों ने श्रार्य शब्द का प्रयोग भारतवर्ष में सर्वप्रथम आकर बसने वालों के लिए किया है ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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